नई दिल्ली

मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी कैसे रोक पाएगी आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी हार या बनाएगी नया रिकॉर्ड …

नई दिल्ली (पंकज यादव) । आगामी चुनाव में हारने के डर से उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर अपने मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली है, लेकिन एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में यह कदम कितना प्रभावी होगा, यह कहना बहुत मुश्किल है। पहले के दो अनुभव बताते हैं कि इस प्रकार के प्रयास बीजेपी के लिए निरर्थक साबित हुए है।

सन् 2000 में उत्तराखंड जब राज्य बना, तब नित्यानंद स्वामी पहले मुख्यमंत्री बनाए गए थे, लेकिन साल पूरा करने से पहले ही उनकी कुर्सी छीननी पड़ गई थी। तब भी यही आशंका जताई गई थी कि वे आगामी चुनाव में बीजेपी की जमानत नहीं बचा पाएंगे। तब भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन कोश्यारी को सिर्फ 4 महीने से ज्यादा सीएम की कुर्सी का सुख नहीं मिल पाया। राज्य में अगली सरकार कांग्रेस की बनी।

साल 2007 में भाजपा ने चुनाव जीता और जब मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन विधायकों में असंतोष के चलते करीब 2 साल बाद उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा को जमानत जब्त होने की आशंका होने लगी और निशंक को हटाकर फिर से खंडूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन वह पार्टी की नैया तो पार लगाना तो दूर की बात खुद भी मझधार में डूब गए यानी खुद भी चुनाव हार गए।

अब चुनाव से ठीक एक साल पहले फिर से उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। पार्टी सूत्रों का दावा है कि इस बार फैसला समय रहते लिया गया है। नए मुख्यमंत्री को एक साल का समय कुर्सी संभालने के लिए मिल रहा है, जबकि कोश्यारी को 4 महीने और खंडूरी को 6 महीने मिल पाए थे।

जानकारों का कहना है कि इस बार समय के अलावा कुछ अन्य कारक भी हैं, जो फायदेमंद साबित हो सकते हैं। जैसे, राज्य में विपक्ष नेतृत्व के संकट से जूझ रही है। जिसका फायदा उठाने के लिए बीजेपी ललायीत है। दूसरे, राज्य में आम आदमी पार्टी भी पैर जमाने की कोशिश कर रही है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह विपक्ष के साथ ही बीजेपी के मतों में भी सेंध लगा सकती है। ऐसे में सबकी नजर इस बात पर होगी कि अगले एक साल के भीतर राजनीतिक हालात क्या रुख लेते हैं।

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