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छत्तीसगढ़ी बोली को शिक्षा में शामिल करने High Court में जनहित याचिका पर सुनवाई …

बिलासपुर । आदिवासी बाहूल्य छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा मिले 21 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी यहां के मूलनिवासियों की बोली छत्तीसगढ़ी को भाषा का दर्जा न मिलने व शिक्षा में शामिल नहीं किए जाने से राज्य की जनता काफी दु:खी है। छत्तीसगढ़ी बोली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कांग्रेस सरकार की ओर से आज भी प्रयास जारी हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था।

छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा को स्थान देने के लिए पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने पहल तो की थी, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन सरकार के आदेश का फरमान भी सरकारी अधिकारी करते नजर नहीं आ रहे हैं। बीते कुछ वर्ष पहले कांग्रेस की राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग की स्थापना भी की, इसके बाद मंत्रालय सहित अन्य शासकीय कार्यालयों में छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग करने अधिकारी-कर्मचारियों को निर्देश भी दिया गया, लेकिन आदेश की इतिश्री होते दिख रहा है।

आपको बता दें कि अब छत्तीसगढ़ी भाषा को प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए दायर जनहित याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। इसकी पहली सुनवाई आज बुधवार को हुई। जनहित याचिका की सुनवाई कार्यकारी चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस एन के चंद्रवंशी के डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने स्कूल शिक्षा विभाग व माध्यमिक शिक्षा मंडल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके लिए दो सप्ताह की मोहलत दी है। अगली सुनवाई 26 अगस्त को है।

याचिका के अनुसार एनसीईआरटी ने वर्ष 2005 आदेश जारी किया था इसमें स्पष्ट कहा है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर बच्चों की पढ़ाई के लिए मातृभाषा सशक्त माध्यम होता है और महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2009 में केंद्र सरकार द्वारा जारी बालक-बालिका शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 29 का जिक्र करते हुए कहा है कि राज्य शासन प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक की पढ़ाई बच्चों को मातृभाषा में प्रदान करेगी। याचिकाकर्ता ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा मातृभाषा में अध्ययन अध्यापन को लेकर समय-समय पर जारी आदेशों का छत्तीसगढ़ राज्य में परिपालन नहीं हो रहा है। राज्य सरकार इस दिशा में गंभीर नजर नहीं आ रही है।

छत्तीसगढिय़ा महिला क्रांति सेना की प्रदेशाध्यक्ष लता राठौर ने वकील यशवंत ठाकुर के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की मांग की है। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर अध्ययन अध्यापन छत्तीसगढ़ी मातृभाषा में करने की मांग करते हुए इसके लिए राज्य शासन को निर्देशित करने की गुहार लगाई है। मातृभाषा में अध्ययन अध्यापन के संबंध में याचिकाकर्ता ने अपने वकील यशवंत ठाकुर के माध्यम से दलीलें भी पेश की है।

याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति वर्ष 2020 में दी गई व्यवस्थाओं की जानकारी देते हुए बताया है कि केंद्र सरकार ने जारी शिक्षा नीति में स्पष्ट कर दिया है कि कक्षा पहली से आठवीं तक की शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। मातृभाषा शिक्षा का सबसे सशक्त माध्यम होता है। इससे बच्चों को वंचित नहीं किया जा सकता।

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