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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सीट बंटवारे पर फंस गई भाजपा

पटना.

बिहार में 23 जून को जब विपक्षी एकता की बैठक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुलाई तो उनका सीधा कहना था कि सीट शेयरिंग में देर नहीं होनी चाहिए। विपक्षी गठबंधन में वह ऐसा कहते-कहते बहुत कुछ का इंतजार कर अंतत: 28 जनवरी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस आ गए। यहां आए भी एक महीने से ज्यादा गुजर गया और अब तो एक हफ्ते में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के आसार हैं।

इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देशभर के 195 प्रत्याशियों की पहली सूची भी जारी कर दी। लेकिन, बिहार में एक भी सीट के लिए प्रत्याशी नहीं घोषित किया। सिर्फ सीट बंटवारे के नाम पर बहुत कुछ अटका हुआ है। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के कंधे पर यह जिम्मेदारी है कि वह सीट बांटे तो भी घटक नहीं बिखरें। इसी में सब फंसा हुआ है।

नीतीश के प्रवेश से बदल गया सबकुछ
दरअसल, 28 जनवरी के पहले भाजपा के साथ-साथ बाकी दलों के लिए भी सीट बंटवारा बड़ा मामला नहीं था। दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों टुकड़ों को भी अच्छी-खासी सीटें मिलने की उम्मीद थी। इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा- सेक्युलर और उपेंद्र कुशवाहा की तत्कालीन राष्ट्रीय लोक जनता दल (अब, राष्ट्रीय लोक मोर्चा) का भी मन ठीकठाक बुलंद था। भाजपा के इन घटकों को लग रहा था कि अगर पिछली बार की 17 सीटों को 20 में बदल कर शेष 20 का बंटवारा भी होगा तो ठीकठाक लोकसभा क्षेत्रों में उनकी पार्टी प्रत्याशी उतार सकेगी। लेकिन, जैसे ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड ने दोबारा एंट्री की तो 2019 चुनाव वाली स्थिति सामने आ गई। तब भाजपा ने 17 और जदयू ने 17 सीटों पर प्रत्याशी दिए थे। शेष छह सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को मिली थी। तब उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी इस खेमे में नहीं थे।

आवक से भाजपा खुद को दिखाएगी मजबूत
भाजपा सीटों के बंटवारे में देर कर रही, ताकि सभी की मंशा सामने आ जाए। इसके साथ ही जिस तरह से कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के विधायक भाजपा की ओर मुखातिब हैं, उससे यह संदेश देने का प्रयास हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी की मजबूती और संभावना देखकर लोग आ रहे हैं। मतलब, भाजपा से सभी का मोह है और उसके पास प्रत्याशियों की कतार लगी है। हालांकि, यह भी पक्का है कि इस बार जदयू कमजोर है और उसे 17 सीटें तो मिलने से रहीं। दूसरी तरफ भाजपा 17 से ज्यादा लेने का प्रयास करे या अपने प्रत्याशियों को सहयोगी दलों के सिंबल पर उतारने का प्रयास भी करे- यह भी संभव है।

अब 40 में 40 सीटें जीत का फॉर्मूला ऐसा
जदयू की राजग में वापसी का मतलब 40 में से 39 सीटें उसके पास है। अब उसे इसे अगले चुनाव में 40 में 40 करने के लिए सहयोगियों को भी संतुष्ट करना है और अपने पास संख्या भी पहले के मुकाबले ठीक रखनी है। चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- "भाजपा 17 सीटें तो अपने पास रखेगी ही। बाकी सीटें जदयू, लोजपा के दोनों गुटों, कुशवाहा और मांझी की पार्टी में बांटेगी। अगर वह समझाते हुए या कुछ अंदरूनी डील कर ऐसा सहजता से कर पाती है तो फायदे में रहेगी, वरना थोड़ी परेशानी में रहेगी। मौजूदा हालत में बहुत अंतर नहीं पड़ेगा, लेकिन किसी का अभी बिछड़ना सामने वाले को मजबूत कर सकता है। लगता है कि इसी पर सीट बंटवारा भी अटका है और इसी कारण बाकी डील भी अटकी है।"

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