छत्तीसगढ़पेण्ड्रा-मरवाही

यात्रा वृतांत : हमारी साहित्यिक और आध्यात्मिक यात्रा: भाग – 1

अक्षय नामदेव । भ्रमण करना हम सभी को पसंद है। हम में से कौन होगा जिसे घूमना फिरना अच्छा ना लगता हो? भ्रमण करने से हमें नई -नई जानकारियां मिलती है ।कई बार जो ज्ञान तथा स्थान विशेष की जो जानकारी हमें किताबों में पढ़कर मिलता है उसे स्वयं अपनी आंखों से देखने तथा अनुभव करने का एक अलग महत्व है। हमारे भारत में तीर्थाटन एवं देशाटन की प्राचीन परंपरा रही है। पूर्व में जब साधनों का अभाव था तब ज्ञान विज्ञान की खोज में यायावर पैदल यात्रा करते थे। यहां वहां जाना और फिर अनुभव प्राप्त करना अत्यंत रोचक होता है। साहित्यकारों एवं लेखकों के लिए ययावरी बहुत जरूरी है। यह उनके लिए संजीवनी बूटी के समान है हालांकि अलग-अलग तरह के लोग यात्राओं के इस अनुभव को अपने अपने तरह से लेते हैं।

जनसंपर्क का विद्यार्थी होने के कारण मुझे भी भ्रमण करना अच्छा लगता है।

राज कपूर साहब की एक फिल्म देखी थी “अराउंड द वर्ल्ड जिसमें फिल्माया यह गीत दुनिया की सैर कर लो दुनिया की सैर कर लो इंसान के दोस्त बनकर इंसान से प्यार कर लो” मुझे बहुत प्रभावित करता है।अपने जीवन की तमाम तरह की बाधाओं के बावजूद मैं भ्रमण के अवसर ढूंढता रहता हूं और अवसर मिलने पर पूरा प्रयास करता हूं कि भ्रमण किया जाए ताकि कुछ नई जानकारियां मेरी जिंदगी के हिस्से में आए। इस बार मुझे भ्रमण का जो अवसर मिला उसकी पृष्ठभूमि मई 2022 में ही तैयार हो चुकी थी। दरअसल उत्तर प्रदेश के रायबरेली की संस्था आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण न्यास द्वारा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की स्मृति में एक अंतरराष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जिसकी ऑनलाइन सूचना मिलने पर  बेटी मैंकला ने भी हिस्सा लिया था। मैंकला बेटी इस वर्ष केंद्रीय विद्यालय अमरकंटक में कक्षा 10 की छात्रा है।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास रायबरेली द्वारा आयोजित ऑनलाइन पुरस्कार वितरण समारोह में अमेरिका इकाई की अध्यक्ष श्रीमती मंजू मिश्रा , भारत इकाई के अध्यक्ष श्री विनोद शुक्ला ,आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के संयोजक गौरव अवस्थी सहित देश के अनेक विश्वविद्यालयों के मूर्धन्य प्रोफेसर की उपस्थिति में 22 मई 2022 को विजेताओं के नाम घोषित किए गए थे जिसमें बेटी मैंकला को भारत वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था  । पहले तो हमें न्यास की ओर से जानकारी दी गई थी कि मैंकला का प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कार की नगद राशि वे डाक के माध्यम से भेजी जाएगी  बाद में जब इस संबंध में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के  संयोजक गौरव अवस्थी जी से बात हुई तो उन्होंने मुझे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के रजत जयंती समारोह में आने का आमंत्रण देते हुए कहा था कि यदि आप अपनी बेटी को लेकर हमारे कार्यक्रम में आए तो हमें और ज्यादा खुशी होगी।

फोन पर हुई इस बातचीत के बाद मेरा वैचारिक आदान-प्रदान गौरव अवस्थी जी से होता रहा और एक दिन उन्होंने मुझे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मिति संरक्षण अभियान के रजत जयंती समारोह के राष्ट्रीय आयोजन समिति में सदस्य के रूप में प्रस्तावित करते हुए सहमति मांगी। मैं तो हिंदी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूं। पढ़ना, लिखना मुझे तो बचपन से ही भाता रहा है। अपनी पढ़ाई के दौरान हायर सेकेंडरी के हिंदी के पाठ्यक्रम में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के कुछ एक निबंध भी पढ़ने को मिले हैं और अब जब अध्यापक के रूप में हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं तो हिंदी के ऐसे मूर्धन्य विद्वान जिससे हमारा हिंदी साहित्य संसार आलोकित है उनके स्मृति के संरक्षण के लिए आयोजित रजत जयंती कार्यक्रम में आयोजन समिति के सदस्य के रूप में शामिल होना गौरव की ही बात है  इसलिए हमने गौरव अवस्थी जी के इस प्रस्ताव पर मुझे भला इस पर क्यों आपत्ति होती?

इस तरह हमारे रायबरेली उत्तर प्रदेश जाने का कार्यक्रम की मजबूत पृष्ठभूमि तैयार हो गई थी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के संयोजक गौरव अवस्थी जी रायबरेली में दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ है।विशिष्टताओं से भरे गौरव अवस्थी जी के बारे में आगे आपको जरूर बताऊंगा। मेरा कार्यक्रम के संयोजक गौरव अवस्थी जी से संपर्क बना रहा और उन्होंने हमें सूचना दी कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मिति संरक्षण अभियान का रजत जयंती समारोह 11 एवं 12 नवंबर को द्विवेदी जी के जन्म स्थान दौलतपुर तथा रायबरेली में आयोजित है और हमें वहां हर हाल में पहुंचना है। अवस्थी जी कि इस सूचना में  मान और मनुहार था ।  इस कार्यक्रम में शामिल होने का मन तो हमने पहले ही बना लिया था।

यात्रा के मार्ग का निर्धारण, रेल में आरक्षण तथा स्कूल से अवकाश लेने की औपचारिकता पूर्ण करने के बाद मैं बेटी मैंकला, पत्नी निरुपमा तथा हमारे पारिवारिक शुभचिंतक पंडित राम निवास तिवारी जी का संयुक्त कार्यक्रम रायबरेली जाने के लिए बन गया। हम 8 नवंबर की रात्रि दुर्ग कानपुर बेतवा एक्सप्रेस से रायबरेली के लिए रवाना हो गए। आप सवाल कर सकते हैं कि जब रायबरेली जाना है तो कानपुर क्यों जा रहे हैं ? दरअसल कानपुर जाने का अपना एक अलग कारण है! कानपुर जाने का मन मेरा कई वर्षों पहले से था परंतु कानपुर जाने का अवसर निकाल नहीं पा रहा था।

कानपुर जाने के पीछे का एक खास कारण यह था कुछ वर्षों पहले मैंने कानपुर के चुन्नी गंज के घंटी वाले शनि मंदिर के बारे में आज तक के विशेष कार्यक्रम धर्म यात्रा में देखा था ।बस उस कार्यक्रम को देखने के बाद ही मेरे मन में कानपुर के घंटी वाले शनिदेव मंदिर जाने की लालसा थी और जब मुझे रायबरेली जाने का अवसर मिला तब भला मैं कानपुर जाने का अवसर क्यों खो दूं ?

उधर कार्यक्रम के संयोजक गौरव अवस्थी जी को मैंने फोन पर बातचीत के दौरान जानकारी दी कि मैं कानपुर के रास्ते रायबरेली आ रहा हूं और बेतवा एक्सप्रेस से कानपुर में उतरूंगा तो उन्होंने मुझे फोन पर ही आश्वस्त किया कि आप निश्चिंत होकर आइए आपको वहां दैनिक हिंदुस्तान के संपादक आशीष त्रिपाठी जी संपर्क करेंगे तथा आपका कानपुर में में मार्गदर्शन करेंगें। हम 9 नवंबर को दोपहर 2:00 हम कानपुर पहुंच चुके थे। इस बीच हमारे पास दैनिक हिंदुस्तान के संपादक आशीष त्रिपाठी जी का फोन आ चुका था जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि आप कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से उतर कर चुन्नी गंज ऑटो से पहुंच जाइए और वहां होटल मंदाकिनी में आपके रुकने की व्यवस्था है। त्रिपाठी जी और गौरव अवस्थी जी विद्यार्थी जीवन में एक दूसरे के सहपाठी रहे है।

इसलिए उन्होंने त्रिपाठी जी को मुझे आवश्यक सहयोग करने को कहा होगा परंतु मुझे कुछ संकोच हुआ। मैंने विनम्रता के साथ उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि भैया हम आप से फोन पर संपर्क में बने रहेंगे परंतु हम यहां अपनी इच्छा अनुसार रुकना और घूमना चाहेंगे तथा जरूरत पड़ने पर आपका मार्गदर्शन और सहयोग अवश्य लेंगे ‌। उन्होंने हमारी भावना का आदर किया और हम इच्छा अनुसार चुन्नी गंज के पासी एक अच्छे से होटल में अपना डेरा डाल दिए। होटल में कुछ देर विश्राम करते शाम लगभग 5:00 बज गए थे। इस बीच मेरे पास गौरव अवस्थी जी का कई बार फोन आया कि आप कहां कैसे रुके हैं? किसी तरह की अव्यवस्था तो नहीं है इत्यादि ।

हमने अपना कार्यक्रम उन्हें बताया कि हम आज शाम यहां घंटी वाले शनि मंदिर का दर्शन करने के बाद रात्रि विश्राम यही करेंगे तथा कल 10 नवंबर को कानपुर के गंगा घाटों का दर्शन करने के बाद रायबरेली के लिए सड़क मार्ग से आएंगे। उन्होंने हमें कानपुर के कुछ दर्शनीय घाटों का नाम बताते हुए सुझाव दिया कि आप कानपुर निकलने के बाद रास्ते में गंगा बैराज एवं बिठूर का भ्रमण जरूर करें। बिठूर में आप लोगों के देखने के लिए बहुत कुछ है। इस बीच कानपुर के भैया आशीष त्रिपाठी संपादक दैनिक हिंदुस्तान का भी फोन आया तथा उन्होंने हमारे रहने के आदि की जानकारी ली।

मैंने उन्हें सब जानकारी देते हुए बताया कि आज यहां के घंटी वाले शनि मंदिर का दर्शन करने के बाद हम कल रायबरेली के लिए रवाना होंगे इसलिए मुझे कोई टूर ट्रैवल वाले का नंबर दे दीजिए ताकि मैं अपने सुविधा अनुसार उनसे गाड़ी ले सकूं। उन्होंने आश्वस्त किया कि आपको कल सुबह मैं टूर ट्रैवल का नंबर उपलब्ध करा दूंगा। श्री त्रिपाठी जी से बात कर एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि वह कोई अनजान व्यक्ति हैं जितनी बार उनसे फोन पर बात हुई बहुत आत्मीयता, आग्रह तथा सम्मान पूर्ण ढंग से,,,।

शाम लगभग 5:00 बजे हम चारों तैयार होकर चुन्नी गंज कानपुर के घंटी वाले शनि मंदिर के लिए रवाना हो गए। होटल से मंदिर तक जाने के लिए हमने एक ई रिक्शा वाले का साथ लिया। कानपुर में ज़्यादातर ई-रिक्शा का प्रचलन हो चुका है। भीड़भाड़ वाले सड़क से होते हुए हम घंटी वाले शनि देव मंदिर की ओर चले जा रहे थे। बीच-बीच में साइड एवं ट्रैफिक को लेकर रिक्शा वालों की आपस में नोंक-झोंक सुनने में बड़ा आनंद आ रहा था। कानपुर की भाषा शैली भी अपने आप में विशिष्टता और कहावतों से भरी हुई है। अलग-अलग क्षेत्रों की बोली उस क्षेत्र विशेष के पहचान की सूचना देती है। भारत विशेष के संबंध में तो कहा गया है चार कोस में बदले पानी सौ कोस में बानी।हम रिक्शा वालों की नोकझोंक का आनंद उठाते चल रहे थे।

इस बीच मैंकला ने याद दिलाया कि टीवी सीरियल भाभी जी घर पर हैं की भाषा शैली बिल्कुल यही है जैसा यह लोग बात करते हैं‌। उसने आगे कहा कि उस सीरियल में कानपुर की मॉडर्न कॉलोनी का दृश्य चित्रण ज्यादा है। निरुपमा भी उसकी हां में हां मिलाते जा रही थी। इस बीच तिवारी  जी ने कानपुर की खराब ट्रैफिक व्यवस्था को देखकर कुछ खिन्न होते हुए कहा अक्षय बाबू किसी भी शहर के ट्रैफिक को देखकर आप वहां की पुलिसिंग का अंदाजा कर सकते हैं। मैंने उनके हां में हां मिलाया।

दोपहर कानपुर सेंट्रल  रेलवे स्टेशन से चुन्नीगंज घंटा चौराहा और नयागंज सहित जिन रास्तों से हम गुजरे वहां ज्यादातर गंदगी पसरी है। हालांकि कानपुर औद्योगिक शहर है तथा यहां भारी जनसंख्या का दबाव दिखता है वाहनों की संख्या भी सड़कों पर इतनी है कि सड़क और गलियां छोटे बड़े वाहनों से पटी पड़ी है। ट्रैफिक कि अव्यवस्था भी चरम पर है। बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण तथा लोगों की व्यवसायिक मानसिकता ने हमारे शहरों का कबाड़ा कर दिया है।

ई रिक्शा वाले ने हमें कानपुर चुन्नीगंज के घंटी वाले शनि मंदिर के सामने लाकर खड़ा कर दिया।

चुन्नी गंज स्थित घंटी वाले शनि मंदिर तीन ओर मुख्य सड़क मार्ग से घिरा है तथा यह एक भव्य और विशाल मंदिर है जो लगभग 8000 वर्ग फुट में फैला हुआ है। ‌ भव्य प्रवेश द्वार मंदिर के बीच में स्थित गर्भ गृह में शनिदेव की सुंदर ,शांत, प्रतिमा विराजित है जिसे देखते ही आपका दृष्टिकोण बदल जाएगा। ज्यादातर शनि मंदिरों में शनि देव की रौद्र मुद्रा वाली मूर्ति होती है परंतु यहां विराजित शनिदेव अत्यंत कोमल भाव से देखते जान पढ़ रहे हैं। मंदिर का विशाल परिसर और गर्भ ग्रह के चारों ओर विशाल परिक्रमा पथ मार्बल एवं टाइल्स से चमचमा रहा है। गर्भ गृह के बाई ओर परिसर में ही पीपल के दो सुंदर वृक्ष है दोनों वृक्ष में चबूतरा बना हुआ है जो परिसर की सुंदरता में वृद्धि कर रहा है। पीपल के पीछे हजारों घंटियां जो बड़े से छोटे आकार की हैं टंगी हुई है।

इसी तरह गर्भ गृह के सामने लगभग एक दर्जन से ज्यादा बड़े बड़े घंटे टंगे हुए हैं। जिस समय हमने मंदिर में प्रवेश किया उस समय शनि देव की आरती चल रही थी। हमें बोध हुआ कि हम बिल्कुल सही समय पर पहुंचे हैं। हम आरती में शामिल हो गए। वहां भक्तजनों की संख्या 30 से 35 के लगभग रही होगी। इनमें से कुछ लोग बड़े-बड़े घंटे के नीचे खड़े होकर मंदिर का घंटा बजा रहे थे। जोर-जोर से टन टन की आवाज से मंदिर परिसर तथा आसपास का वातावरण गुंजायमान था जो हमें रोमांचित कर रहा था। हम चारों भी गर्भ गृह के सामने खड़े होकर शनि देव जी की आरती में शामिल हो गए।

दरअसल चुन्नी गंज के शनिदेव भारत के एकमात्र ऐसे शनिदेव हैं जहां शनिदेव को तेल नहीं घंटियां चढ़ाई जाती हैं। यहां लोग मानता की घंटी बांधते हैं तथा मानता पूरी होने पर घंटी चढ़ाते हैं। यही कारण है कि यहां शनिदेव के मंदिर में हजारों की संख्या में घंटियां चढ़ी हुई है जो भक्तों के द्वारा चढ़ाई गई है। आरती समाप्त होने के बाद प्रसाद का वितरण हुआ। मुख्य पुजारी आरती के बाद मंत्र पढ़ते हुए बाहर आए और गर्भगृह से लगभग 40 फिट दूर बने अपने आसन में बैठ गए। पूजा-पाठ और दर्शन के बाद हम चारों भी पुजारी जी से मिलकर उनका आशीर्वाद लिया तथा मंदिर में घंटी चढ़ाने की इच्छा जताई। पंडित जी ने कहा कि पहले मंदिर के सामने घंटियां बिकती थी परंतु अब कोरोनावायरस संक्रमण के बाद यह दुकानें बंद हो चुकी हैं।

यदि आप की इच्छा हो तो पास ही  बाजार में बर्तन की दुकान है वहां से आप घंटी लाकर चढ़ा सकते हैं। मैं एक ऑटो मैं बैठकर एक बर्तन दुकान चला गया और वहां से एक घंटी खरीद कर लाकर भगवान शनि देव जी को अर्पित किया और वहां उसी स्थान पर जहां हजारों की संख्या में घंटियां टंगी हुई है वहां बांध दिया। मंदिर में कुछ देर बैठने के बाद अब हम पुनः एक ई-रिक्शा वाले को बुला कर उसे होटल का पता बताया तथा होटल का पता बताने के साथ उससे कहा कि लौटते समय हमें किसी अच्छे शाकाहारी होटल में भोजन करने की इच्छा है।

उसने हमारी इच्छा का ध्यान रखते हुए हमें एक शुद्ध शाकाहारी होटल के सामने पहुंचा दिया जहां हमने भोजन किया तथा भोजन करने के बाद हम रात्रि विश्राम के लिए अपने होटल वापस पहुंच गए और विश्राम अवस्था में पहुंच गए ।

                  क्रमशः

Back to top button