मध्य प्रदेश

भारत में विकसित हो रही टेक्नोलॉजी में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना समाहित

8वें इंडियन इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल के तीसरे दिन पैनल डिस्कशन और ऑर्थस मीट सहित हुई विभिन्न गतिविधियाँ

भोपाल। मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में चल रहे 8वें इंडियन इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में सोमवार का दिन बेहद खास रहा। एक तरफ जहाँ स्कूली बच्चों ने हाँगकाँग का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड ब्रेक कर इतिहास रचा। वहीं, दूसरे सत्रों में विज्ञान पर केंद्रित कविता के पठन-पाठन का सिलसिला चला। यही नहीं देश के विभिन्न देशों से आये वैज्ञानिकों ने विज्ञान में हो रहे नवाचारों से स्टूडेंट्स को परिचित भी कराया और विज्ञान में कॅरियर के ऑप्शन के बारे में चर्चा की।

देशभर से आए कवियों ने किया कविता पाठ

“विज्ञानिका” अंतर्गत साइंस लिट्रेचर फेस्टिवल में विज्ञान कवि सम्मेलन हुआ। इसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 10 कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं को सुना कर हॉल में उपस्थित श्रोताओं को मुग्ध किया। इस सत्र की अध्यक्षता कवि और लेखक  संतोष चौबे ने की। कवि और अभिनेता नीलेश मालवीय विशेष रुप से उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत में सारिका घारू ने विज्ञान के क्षेत्र में नारी शक्ति की बढ़ती भागीदारी पर आधारित कविता “विज्ञान से नारी सशक्तिरण नहीं है हमारा नारा…” को सुनाया। इसके बाद लखनऊ से आए पंकज प्रसून ने “आई है वो जीवन में तूफान की तरह…”, कविता को सुनाया। विशाल मालवीय ने हाईड्रोजन न हिंदू होता है, मैग्नीशियम न मुसलमान… रचना को सुनाकर वाहवाही पाई। कविता और शेर-ओ-शायरी के कारवाँ को आगे बढ़ाते हुए जौनपुर की शुचि मिश्रा, दिनेश चमोला, मोहन सगोरिया और सुधीर सक्सेना ने अपनी कविताओं और कलामों को पेशकर हर श्रोता को प्रफुल्लित कर दिया।

विज्ञान के नवाचारों से फिर विश्वगुरु बनेगा भारत

आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होने पर भारत की अर्थ-व्यव्स्था और उसमें विज्ञान के योगदान को लेकर विजन फॉर इंडियन इकोनॉमी इन नेक्स्ट 25 इयर्स- ए न्यू एज टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव विषय पर पैनल डिस्कशन हुआ। इसमें विज्ञान के अलग-अलग प्रभागों में सराहनीय कार्य कर रहे विद्वानों ने सार्थक चर्चा की। आईआईटी दिल्ली के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रोहन पॉल ने कहा कि हमारी संस्कृति वसुधैव कुटम्बकम की रही है। हम अपने यहाँ कुछ भी विकास करते हैं तो उसे दुनिया के हर कोने तक पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में जब हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाई तो हमने न सिर्फ अपने देश के जन-जन तक पहुँचाई बल्कि दूसरे देशों में भी भेजी, जिससे कोरोना से विश्व का बचाव कर सकें। इसका अर्थ है कि हम जो भी टेक्नोलॉजी को विकसित कर रहे हैं, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से कर रहे हैं।

विकास के लिए इंफ्रा-स्ट्रक्चर है जरुरी

स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, विजयवाडा़ के प्रोफेसर डॉ. रमेश कोंडा ने बताया कि किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था इंफ्रा-स्ट्रक्चर पर निर्भर रहती है। यदि हम अपने देश में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करते हैं, तो देश में विकास के नए आयाम स्थापित होंगे। इसके लिए जरुरी है कि जीएस बेस्ट प्लानिंग बनाई जाए। जो टाउन से लेकर सिटी और सिटी से लेकर रीजन तक हो। इसमें टाउन प्लानिंग के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी रोडमैप तैयार किया जाए। इसमें हमारी रेसिडेंशियल और कमर्शियल सभी तरह की प्लानिंग हो साथ ही नैचुरल डिजास्टर से लड़ने के लिए भी हम तैयार रहें।

ऑथर मीट में सुनाए संस्मरण

ऑथर मीट सत्र हुआ। इसमें साइंटिफिक फॉर पब्लिक इंगेजमेंट विषय पर स्विट्जरलैंड की सर्न लेबॉरेटरी में कार्यरत साइंटिस्ट अर्चना शर्मा, राइटर स्वाति तिवारी, जेएनयू में साइंस राइटर पीए सबरीश, नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया के सहायक संपादक पंकज चतुर्वेदी, साइंस राइटर प्रमोद भार्गव, एफसीआई में हिंदी ऑफिसर अमित कुमार, निरंजन देव भारद्वाज और साइंटिस्ट मेहर वान ने चर्चा की। स्वाति तिवारी ने बताया कि उन्होंने जीवन में कई क्षेत्रों में कार्य किया है। इनमें पत्रकारिता से लेकर इतिहास और साइंस सभी विषयों में कार्य करने का मौका मिला है। भोपाल में जब आई थी तो चार इमली में रहते थे, वह पर्यावरण की दृष्टि से काफी सुंदर जगह है। कुछ वर्षों बाद जब हमारी पोस्टिंग वापस भोपाल हुई तो मैंने फोटोग्राफी की शुरुआत की। ये फोटोज लोगों को पसंद भी आए, जिससे मेरे फोटोज कई मैग्जीन के कवर पेज भी बने। बाद में नेशनल ज्योग्राफी पर भी फोटोज लिखे। इसके बाद मैंने पक्षियों को लेकर किताब में लिखा। इसमें मैंने बताया है कि कैसे पक्षियों को पहचानें। भोपाल में पक्षी कहाँ-कहाँ पाए जाते हैं। भोपाल गैस त्रासदी का पक्षियों पर क्या प्रभाव रहा है। अर्चना शर्मा ने अपनी पुस्तक इंडियाज साइंस जीनियस के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि हर बच्चा एक जीनियस होता है। जब एक न्यू बॉर्न बेबी होता है तो उसमें उभरने का काफी पोटेंशियल होता है। कभी-कभी साइंटिस्ट ही कम्युनिकेटर बन जाते हैं। सांइस के लिए हमारे देश के युवा लगातार कार्य कर रहे हैं। ऐसे में हमें सिर्फ सही मार्गदर्शन की जरुरत है। उन्होंने कहा कि पीटर हेग्स को जिस प्रोजेक्ट के लिए नोबल पुरस्कार मिला था उसके लिए हमारे देश के सैकड़ों वैज्ञानिकों ने काम किया था। लेकिन उनको उनके हिस्से का नाम नहीं मिल सका। इसको लेकर मैंने नोबल ड्रीम्स ऑफ इंडिया नामक किताब भी लिखी है।

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