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पीसीपीएनडीटी एक्ट पर राज्य स्तरीय कार्यशाला में घटते लिंगानुपात एवं बेटियों के महत्व पर जन-जागरूकता पर दिया गया जोर…

रायपुर। स्वास्थ्य विभाग द्वारा लिंग चयन और पी.सी.पी.एन.डी.टी. एक्ट पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन आज राजधानी रायपुर में किया गया। भारत सरकार एवं विभिन्न राज्यों से आए विशेषज्ञों ने कार्यशाला में घटते लिंगानुपात और बेटियों के महत्व पर जन-जागरूकता पर जोर दिया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संचालक भोसकर विलास संदिपान ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि घटता लिंगानुपात एक बड़ी चुनौती है। इसे सही स्तर पर रखने के लिए हमें बेटे और बेटियों के भेद को खत्म करते हुए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें न केवल जन्म के समय लिंगानुपात को बेहतर करना है, बल्कि शिशु लिंगानुपात में भी सुधार लाना है।

कार्यशाला में पी.सी.पी.एन.डी.टी. के छत्तीसगढ़ के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. महेन्द्र सिंह, भारत सरकार में पी.सी.पी.एन.डी.टी. की लीड कंसल्टेंट श्रीमती इफ्फत हामिद, हरियाणा सरकार की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सरोज अग्रवाल एवं पुणे की अधिवक्ता श्रीमती वर्षा देशपांडे ने पी.सी.पी.एन.डी.टी. एक्ट के क्रियान्वयन पर अपने अनुभव साझा किए। कार्यशाला में एक्ट के विभिन्न प्रावधानों एवं नए दिशा-निर्देशों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।

राज्य स्तरीय कार्यशाला की शुरूआत में पी.सी.पी.एन.डी.टी. के संयुक्त संचालक डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव ने पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 (पी.सी.पी.एन.डी.टी. एक्ट) के उपयोग, महत्व एवं जरूरत के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला में नोडल अधिकारियों के लिए डिकॉय ऑपरेशन एवं विधिक कार्यवाही के संबंध में सार्थक विमर्श किया गया। सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, सलाहकार समिति के सदस्य और जिलों के समुचित प्राधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कार्यशाला में शामिल हुए।

पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। गर्भधारण से पहले या बाद में, लिंग चयन के निषेध के लिए और आनुवंशिक असमानताओं या मेटाबोलिक विकारों या क्रोमोसोमल असमानताओं या कुछ जन्मजात विकृतियों का पता लगाने के प्रयोजनों के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के विनियमन के लिए इसे लागू किया गया है। लिंग निर्धारण के लिए ऐसी तकनीकों के, जिनके कारण स्त्री लिंगी भ्रूण का वध हो सकता है, दुरूपयोग के निवारण तथा उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए यह अधिनियम बनाया गया है।

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