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भानुप्रतापपुर उपचुनाव: गुस्से में है वोटर, आदिवासी आरक्षण कटौती तो व्यापारी जिला नहीं बनने से नाराज, फिर भी कांग्रेस मजबूत …

रायपुर । भानुप्रतापपुर उपचुनाव में हर सियासी दल अपनी जीत के वादे में मस्त है। मगर ग्राउंड जीरो पर मामला कुछ अलग ही है। भानुप्रतापुपर का वोटर गुस्से में हैं। किसी को जिला न बनने की नाराजगी है, किसी के मन में आदिवासी आरक्षण की कटौती का गुस्सा है। वहीं छत्तीसगढ़ में 15 साल सत्ता में रही। जबकि आरक्षण में कटौती होने से वे कांग्रेस को भी आड़े हाथों ले रहे हैं बाजूद इसके वे कांग्रेस को वोट देने का मन बना चुके हैं। आदिवासियों का मानना है कि भूपेश सरकार ने इन 4 सालों में जितना काम किया है वह राज्य गठन के 20 सालों में भी नहीं हो पाया था।

कांकेर जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर भानुप्रतापपुर कस्बे में मुख्य चौराहे पर कांग्रेस और भाजपा के चुनावी कार्यालय हैं। दोनों ही पार्टियां अपने-अपने वोटरों को लुभाने जी तोड़ कोशिशें कर रही हैं। इन्हीं चुनावी दफ्तरों से लगी है भानुप्रतापपुर की मुख्य सड़क। यहां सैकड़ों दुकानें हैं। इन दुकानों के बाहर पोस्टर लगा है, जिसमें लिखा है- जिला नहीं तो वोट नहीं।

इस इलाके में रहने वाले नागरिक संतोष साहू ने कहा- हमें हर काम के लिए कांकेर जाना पड़ता है। कोई प्रमाण पत्र बनवाना हो, जमीन की रजिस्ट्री हो इस तरह के मामूली कामों के लिए 50 किलोमीटर का सफर मतलब पूरी दिन खराब, ऐसा भी नहीं है कि सरकारी दफ्तरों में काम भी झट से हो जाए। इस तरह के काम तो प्रदेश के अन्य जिलों में कुछ घंटों में हो जाया करते हैं हमें कई दिन लग जाते हैं। इस वजह से ये हिस्सा जिला बनना चाहिए। जिला बनेगा तो विकास भी काफी होगा इस हिस्से का।

भानुप्रतापपुर में के तेंदूपत्ता की गुणवत्ता प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में सबसे अच्छी है। जो संग्रहण में पहला स्थान रखता है। क्षेत्र के चार, चिरौंजी और आमचूर की देश भर में काफी मांग है। सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। वही यहां लौह अयस्क की भी प्रचुरता है, जहां क्षेत्र में लौह अयस्क के लिए ग्राम कच्चे में गोदावरी माइंस, भैंसाकन्हार में सीएमडीसी, हाहालद्दी, चेमल, मेटाबोदली माइंस संचालित है। स्थानीय लोगों का मनना है कि जिला न होने की वजह से यहां के खनिज से होने वाई कमाई का इस्तेमाल यहां के विकास में नहीं हो पाता।

भानुप्रतापपुर के शहरी कस्बे के हिस्स से लगभग हर 10 किलोमीटर पर आदिवासी समुदायों के गांव हैं। इन गांवों की पतली सड़कें और गलियां शांत दिखती जरूर हैं, मगर इनमें सियासी गुस्सा भरा हुआ है जो अब फूट रहा है। गांव के बरगद और पीपल के पेड़ों के नीचे सभाएं हो रही हैं। इसमें आदिवासी कसम खा रहे हैं कि भाजपा और कांग्रेस को वोट नहीं देंगे।

ऐसी कसम भैंसाकन्हार के ग्रामीणों ने ली है। गांव के निवासी और आदिवासी समुदाय के पदाधिकारी समरथ दर्रो ने बताया कि आस-पास के गांव चपेली, चारामा, दुर्गुकोंदल, साल्हे, कच्चे जैसे 10 से अधिक गांवों के लोगों ने ये शपथ ली है। यह हमारे लिए चुनाव नहीं अधिकारों की लड़ाई है। आदिवासी आरक्षण 32 प्रतिशत से घटाकर 20 कर दिया गया।

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