नई दिल्ली

हिंदुओं से अलग धर्म चाहते हैं 50 लाख आदिवासी: सरना को अलग धर्म बनाने की मांग; तर्क- जैनियों से ज्यादा आदिवासियों की आबादी …

नई दिल्ली। पटना के गांधी मैदान में शुक्रवार को 5 राज्यों के 10 हजार से ज्यादा आदिवासी जमा हुए हैं। इनकी एक ही मांग थी कि भारत सरकार ‘सरना धर्म कोड’ को लागू करे। इसका मतलब ये हुआ कि अगले जनगणना फॉर्म में दूसरे सभी धर्मों की तरह सरना के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए। इसके साथ ही हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चयन, जैन, सिख और बौद्ध की तरह ‘सरना’ को भी अलग धर्म का दर्जा मिले।

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 11 करोड़ आदिवासी थे। इनमें 50 लाख से ज्यादा लोगों ने हिंदू के बजाय सरना को अपना धर्म बताया था। पिछले 11 सालों में इनकी संख्या और ज्यादा बढ़ी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर फिलहाल प्रोटेस्ट को टाल दिया गया है। भास्कर से बातचीत में पूर्व सांसद और सरना समुदाय के नेता सालखन मुर्मू ने यह जानकारी दी है। हालांकि, अलग-अलग राज्यों में इनके आंदोलन जारी हैं। इसी वजह से इस नए धर्म को लेकर चर्चा हो रही है।

भारत में आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म को मानता है। इनके मुताबिक सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं। झारखंड में इस धर्म को मानने वालों की सबसे ज्यादा 42 लाख आबादी है।

ये आदिवासी लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं और हिन्दूओं की मूर्ति पूजा में बिल्कुल यकीन नहीं करते हैं। सरना धर्म से जुड़े आदिवासी सेंगेल अभियान संगठन के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि इस धर्म को मानने वाले लोग 3 चीजों की पूजा करते हैं।

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