लेखक की कलम से
योग …
चित्त प्रवृतियों का निरोध योग,
करे नित्य योग,भगाए रोग।
एक शब्द नही,विराट ब्रह्मांड हैं योग,
खुद से मिलन कराता हैं योग।
जाग्रत तन मन को करता,
असीम ऊर्जा से हमको भरता।
जो अपना ले आज से योग,
भर जाए ऊर्जा से,भागे रोग।
फिर क्यो योग से दूरी,
क्यो बताते हो नित मजबूरी।
अपनाओ योग,जरा खुद को जानो।
जरा आज शक्ति पहचानो।
तो लो संकल्प,बढ़ाओ कदम,
हर दर्द भगाएंगे हम।
सीखना आज से ही योग,
मन पर कुछ काम करना है।
अतुल्यता से भरे इस शरीर को,
बस जाग्रत आज ही करना है।
कर सकते हम हर एक काज,
खुद को जान ले जो आज।
फिर सीख ले योगा आज,
बढ़ाये शुभता को कदम आज।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी