मध्य प्रदेश

गाय के गोबर और मूत्र से लिख रहे सफलता की नई इबारत

सरकारी स्कूल की छात्रा ने गाय के गोबर से बनाए गौक्रिट मॉडल, प्रदेशभर में मिल रही सराहना

सतना। सतना के शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई विद्यालय में पढऩे वाली 15 साल की कलश शर्मा के तैयार किए गाय के गोबर से गौक्रीट के मॉडल को प्रदेश में पहला स्थान हासिल मिला है। इस मॉडल को अब जल्द ही राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी में पेश किया जाएगा। शाजापुर जिले के शुजालपुर में आयोजित राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में यूं तो छात्र-छात्राओं ने विभिन्न किस्म के साढ़े 4 सौ मॉडल पेश किए थे, लेकिन स्वास्थ्य और स्वच्छता कैटेगरी में रखे गए 50 मॉडल्स में कलश के मॉडल को एक नवाचार के रूप में लिया गया।निर्णायक मंडली ने इसे पहले स्थान पर रखा, छात्रा द्वारा गौक्रीट का मॉडल पेश करने का मकसद ये है कि अगर लोग गाय के गोबर से तैयार कीगई ईंटों से घर बनाएं तो यह पूर्णत: ईकोफ्रेण्डली होगा और पर्यावरण शुद्धता के साथ-साथ घर के तापमान को भी नियंत्रित रखेगा।

ऐसे बनती है गोबर की ईंट

इस बारे में छात्रा कलश शर्मा ने बताया कि यह मॉडल गौक्रिट हाउस गोबर की ईंटों से बना हुआ है, और गोबर की ईंटों से हमने पूरा घर बनाया है, इसमें सीमेंट की आवश्यकता नहीं होती। एक पूरी ईंट बनाने में गाय का दो किलोग्राम गोबर, 2 सौ ग्राम चूना, आवश्यकतानुसार मिट्टी, भूसा और पानी का इस्तेमाल किया जाता है।

गोबर ईंट से बने घर के फायदे

गोबर से बने घर ऊष्मा रोधी होते हैं, और इनमें टेंपरेचर मेंटेन रहता है, इन घरों में एयरकंडीशनर या हीटर की आवश्यकता नहीं होती है, और इन घरों के अंदर बाहर के तापमान से 10 डिग्री तक का बदलाव रहताहै, गोबर के बने ईटों के घर कई प्रकार की बीमारियों से बचाते हैं, क्योंकि यह रेडिएशन को ऑब्जर्व कर लेते हैं, इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण को भी कम करता है। विद्यालय के प्राचार्य कुमकुम भट्टाचार्य ने बताया कि छात्रा कलश शर्मा द्वारा बनाए गए मॉडल को प्रथम स्थान मिलने से हमारा स्कूल गौरवान्वित हुआ है। गौक्रिट का यह मॉडल हर तरह से अनूठा रहा है, इसमें कुछ चीजें ऐसे मिलाई गई हैं जिससे गोबर की ईंटेंजले या गले नहीं।

…इधर, प्राकृतिक खेती के लिए गौमूत्र एकत्रित कर

रहीं महिलाएं, अर्जित होगी अच्छी खासी आय

पन्ना। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, यह प्रयास भले ही अभी तक जमी पर नहीं दिख रहे हों, लेकिन सामाजिक संगठनों के सहयोग से रहुनियां, पलथरा और बिलहा सहित आसपास के गांव के किसानों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। गांवों के दो दर्जन से भी अधिक किसान घरों में ही जैविक खाद तैयार करने के बाद कीटनाशक भी तैयार कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें बड़ी मात्रा में गौ मूत्र की जरूरत पड़ रही है। इसी को देखते हुए सामाजिक संस्था की समझाइश और प्रोत्साहन पर किसानों ने गौ मूत्र का संग्रह भी शुरू कर दिया है। जिन किसानों के घरों में मवेशी नहीं हैं, उन्हें नाम मात्र की कीमत पर गांव के लोग ही अब गौमूत्र उपलब्ध कराएंगे। ग्राम बिलहा की राजाबाई पटेल, बिलखुरा की कीर्तन देवी और पुष्पा पटेल ने बताया हम लोगों को घरों में ही जैविक कीटनाशक तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे 25-30 किसान गांव में ही कीटनाशक तैयार कर रहे हैं। जैविक कीटनाशक तैयार करने में सबसे अधिक गौमूत्र का ही उपयोग होता है। इसलिए जिन किसानों के घरों में मवेशी नहीं हैं, उन्हें मौमूत्र देने के लिए गांव के लोगों ने समर्थन संस्था की समझाइश के बाद गौ मूत्र का संग्रह भी करना शुरू कर दिया है। महज तीन-चार दिनों में ही किसानों ने करीब डेढ़ सौ लीटर गौमूत्र एकत्रित कर लिया है। जिन किसानों को इसकी जरूरत है, उन्हें नाम मात्र की कीमत पर गौमूत्र दिया जा रहा है। इससे किसानों को घरों में ही जैविक खाद तैयार करने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय का एक बड़ा साधन भी मिल जाएगा।

प्राकृतिक खेती के लिए छोड़ा एक-एक खेत

विक्रमपुर की राधारानी, बिलखुरा की कीर्तन देवी, पलथरा के गुलाब सिंह और शिव सिंह ने बताया, प्राकृतिक तरीके से खेती करने के लिए आसपास के गांव के दो दर्जन से अधिक किसानों ने अपने-अपने एक-एक खेत छोड़ दिए हैं। इनमें खेती करने के लिए गोबर की खाद का उपयोग किया जा रहा है। साथ ही इसमें पूरी फसल सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं की देख रेख में की जाएगी। कीटनाकश के रूप में जैविक रूप से बनाए गए कीटनाशक अग्नियास्त्र, जीवामृत सहित अन्य जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है।

यह बोले अधिकारी…

  • समर्थन के फील्ड क्वार्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी के अनुसार जैविक कीटनाशक बनाने में गौमूत्र का सबसे अधिक उपयोग होता है। जिन किसानों के पास गौ वंशीय मवेशी नहीं हैं उन्हें गौ मूत्र नहीं मिल पा रहा था। इसीलिए कुछ ग्रामीणों को गौ मूत्र संग्रहित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। हमारे प्रयास के शुरुआती दिनों में ही अच्छे परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं।
  • कृषि विज्ञान केंद्र पन्ना के प्रभारी व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. पीएन त्रिपाठी ने बताया कि प्राकृतिक खेती, जैविक कीटनाशक और उर्वरक के गांव में ही निर्माण के लिए किसानों की कार्यशाला और प्रशिक्षण के कार्यक्रम दिसंबर माह में प्रस्तावित हैं। सरकार की ओर से भी किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रोत्साहि करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
  • उप संचालक कृषि केपी सुमन का कहना है कि इस सीजन में करीब 500 किसानों द्वारा 600 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य रखा गया है। इसे प्रमोट करने के लिए किसानों को प्रशिक्षत किया जाएगा। सरकार की ओर से किसानों को प्रति गौवंशीय मवेशी पालन के लिए 900 रुपए देने की भी घोषणा की गई है।
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