नई दिल्ली

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मु पर क्यों ‘ममता’ लुटा रहीं दीदी, भरोसे और नैरेटिव के संकट में फंसीं …

नई दिल्ली । एनडीए की राष्ट्रपति की आदिवासी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू आज बंगाल में हैं। इस दौरान वह भाजपा के सांसदों और विधायकों से मिलने वाली हैं। इसी बीच कोलकाता में एक कार्य़क्रम में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, निसिथ प्रमाणिक, जी. किशन रेड्डी और शुभेंदु अधिकारी के अलावा सुकांत मजूमदार ने उनका सम्मान किया। अब तक टीएमसी के नेताओं से मुलाकात का उनका कोई कार्यक्रम नहीं है, लेकिन चर्चा है कि ममता बनर्जी की पार्टी के कुछ विधायक भी राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। यही वजह है कि ममता बनर्जी ने द्रौपदी मुर्मू को लेकर नरम रुख दिखाया है। उनका यह रुख इसलिए हैरानी भरा है क्योंकि खुद उनकी ही पहल पर टीएमसी के नेता यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था।

बंगाल की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि ममता के पसोपेश में पड़ने की वजह वोट और नैरेटिव दोनों हैं। एक तरफ वह खुद को महिलाओं की नेता के तौर पर भी पेश करती रही हैं। ऐसे में यदि वह एक महिला और वह भी आदिवासी उम्मीदवार का विरोध करती हैं तो उन्हें अपना परसेप्शन खराब होने का डर है। ममता ख़ुद ही कहती हैं कि वह महिलाओं को लेकर आग्रही हैं। इसके अलावा बंगाल विधानसभा में 84 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें 16 जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं। बंगाल में 6 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं और यदि ममता बनर्जी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन नहीं करती हैं तो इनके छिटकने का डर है।

भाजपा को 2019 के आम चुनाव में दलितों की अधिक संख्या और आदिवासी इलाकों में ही बड़ी जीत मिली थी। यह तथ्य भी ममता बनर्जी की चिंताओं को बढ़ाने वाला है। हालांकि उनके लिए राष्ट्रपति चुनाव छवि का सवाल भी बन गया है। यदि वह यशवंत सिन्हा के समर्थन से पीछे हटती हैं तो विपक्ष के बीच उनका इकबाल कम होगा। अपने ही लीडर को उम्मीदवार बनाने के बाद भी हटने के चलते ममता बनर्जी विपक्ष के बीच अविश्वसनीय हो सकती हैं। इससे राष्ट्रीय स्तर पर उनकी संभावनाओं पर असर देखने को मिलेगा।

ममता बनर्जी ने भले ही अपनी ही पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनवाया है, लेकिन उनके नामांकन में वह खुद नहीं पहुंची थीं। तब से ही उनके रुख पर सवाल खड़े हो रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों तो उन्होंने खुद ही कह दिया था कि यदि भाजपा द्रौपदी मुर्मू के नाम पर पहले बात कर लेती तो हम विचार करते। ममता बनर्जी ने कहा था, ‘अगर हमें पता होता कि वे आदिवासी महिला या अल्पसंख्यक समुदाय से किसी को उम्मीदवार बनाने वाले हैं तो हम इस पर विचार कर सकते थे। हमारे मन में आदिवासियों और महिलाओं को लेकर बहुत आदर है। अब्दुल कलाम को लेकर हमने सहमति बनाई थी। हमारे गठबंधन में 16-17 पार्टियां हैं और मैं एकतरफ़ा अपना क़दम पीछे नहीं खींच सकती।’

कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी के मुर्मू को लेकर नरम रुख अपनाने से उनकी पार्टी के विधायक और सांसद ऊहापोह में हैं। इसके अलावा भाजपा भी उन्हें घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार ने ममता बनर्जी को चिट्ठी लिख द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन मांगा है। अब तक इस पर टीएमसी की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है। लेकिन भाजपा की यह चिट्ठी उन्हें घेरने की कोशिश जरूर मानी जा रही है।

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