लेखक की कलम से

पानी का मिज़ाज …

नज़्म

 

तुमसे मुहब्बत का हिसाब कोई क्या जाने ।

समंदर में पानी का मिज़ाज कोई क्या जाने ।।

 

ग़रूर इसका कि मुहब्बत है उसके दिल में ।

परतों में छुपा कौन कोई क्या जाने ।।

 

सब्र को ले हाथ तसल्ली से में बैठ गया ।

हुआ है गिरेंबा चाक मिरा कोई क्या जाने ।।

 

दिल के आइने में जो हल्की सी दरक आइ है ।

मुहब्बत आज़माने का हश्र कोई क्या जाने ।।

 

तुम ना पियोगे जब तक इश्क़ के आँसू ।

कैसी है तन्हाई की आवाज़ कोई क्या जाने ।।

 

फ़िक्र किसको थी कि शमा जली रात भर ।

पल पल ख़ुद को मिटाना कोई क्या जाने ।।

 

रेत में जो बिजली चमकी रह रह कर ।

मिट गया किसका निशाँ कोई क्या जाने ।।

 

सर्द हवाओं में बैठा था मुसाफ़िर शब भर ।

कौन उठ के काँधे पे गया कोई क्या जाने ।।

 

©सवि शर्मा, देहरादून                                                        

Back to top button