लेखक की कलम से

वाह रे करोना …

वाह रे करोना, दुनियाँ भर ल,

तै करौनी कस, करो डरेस।।

बड़े बड़े कूकरी ल आज,

तै खड़े -खड़े सरो डरेस।।

 

तोर सेती कुकरी के,

भाव गिरे भारी।

तोर सेती मरत हे,

मछरी बिचारी।

कतको मनखे ल तै,

सवनाही कस बरो डरेस …

 

कोनो ल लागे खांसी,

त कोनो ल धरे सर्दी।

करोना के मार ह,

बड़ लागत हे बेदर्दी।।

डॉक्टर के दवाखाना ल,

मरीज के मारे भरो डरेस …

 

वाह रे करोना,

तोर पीरा म,

दुनियां ह रोय।

कोन कहिथे,

चाइना माल,

टिकाऊ नई होय।।

तै तो हफ्ता ले पन्दरा,

अउ महीना ल पुरो डरेस …

 

करोना के आतंक देख के,

शेयर बाजार ह डोलत हे।

हाय- हलो ल छोड़ के सब,

हाथ जोड़ नमस्ते बोलत हे।।

सबके गरम खून ल,

देख तो तेहा जुडो डरेस …

 

तोला देख के,

नेता मन के,

टोटा ह सुखागे।

देख तो जम्मो पेपर म,

तोर खबर ह छपागे।

बनके महामारी तै,

मनखे ल बिल्होर डरेस …

 

प्रखर कहे दुनियाँ ल,

मांसाहारी ल छोड़व।

सरल जिनगी जिओ,

अउ शाकाहार ह जोड़व।।

बनके आज अल्हन,

तेहा दुनियाँ ल जोड़ डरेस …

 

अति सर्वत्र वर्जयेत,

ये धर्म के प्रमाण हे।

अब तो माने ल पड़ही,

कण-कण म भगवान हे।।

ये दुनियाँ म का आएस,

सब ल तै झकझोर डरेस …

©श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”, राजिम, गरियाबंद (छग)

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