दुनिया

दो दुर्लभ सफेद जिराफों की हत्या, वन्य जीवों को बचाने की बढ़ी चुनौती

मुम्बई {हेमलता म्हस्के} । कोरोना वायरस से स्वयं को बचाने में जुटी मानवता के सामने केन्या में दुर्लभ दो सफेद ज़िराफों के मारे जाने की खबर भले थोड़ी दब गई हो लेकिन दुनिया भर के वन्य प्रेमियों में तो हाहाकार ही मच गया है क्योंकि अब दुनिया में सफेद प्रजाति का बस एकमात्र नर बचा हुआ है। एक सफेद माता जिराफ और उसके 7 महीने के बच्चे को केन्या में पशु तस्करों ने मार डाला।

पूर्वोत्तर केन्या स्थित जिस इशाक बिनी हिरोला कम्युनिटी कंजर्वेशन सेंटर में उन जिराफ को रखा गया था, उसके प्रबंधक का कहना है कि यह इजारा समुदाय के साथ-साथ पूरे केन्या के लिए गहरे दुख का समय है। इस सेंटर का यह भी कहना है कि अब केन्या में दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण की चुनौती बढ़ गई है और सफेद जिराफ की हत्या के बाद शिकारियों के प्रति क्षोभ और बढ़ेगा। दोनों जिराफ की हत्या की जांच में जुटे वन्यजीव अधिकारियों के मुताबिक इन सफेद जिराफ की हत्या 4 महीने पहले की गई थी। अब उनके शव मिले हैं। इस हत्या की जांच शुरू हो गई है।

कंजर्वेशन सेंटर के पास एक ग्रामीण चरवाहे ने तीन साल पहले जब पहली बार सफेद मादा जिराफ और उसके बच्चों को देखा तो उसने उसकी तस्वीर ले ली थी। यह तस्वीर वायरल हो गई थी तब दुनिया भर के प्रेमियों के लिए सफेद जिराफ कौतूहल का केंद्र बन गया क्योंकि आमतौर पर ज्यादातर जिराफ की त्वचा एकदम सफेद नहीं होती उस पर पैटर्न होते हैं। पिछले साल उस मादा जिराफ ने एक और बच्चे को जन्म दिया था, जिससे सफेद जिराफ की संख्या 3 हो गई थी। वैसे दुनिया में बाकी जिराफ की दशा भी ठीक नहीं है। उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है क्योंकि मांस और खाल के लिए उनके शिकार पर रोक नहीं लग रही है। दूसरी ओर खेती और ढांचागत विकास के कारण जंगलों का भी तेजी से विनाश हो रहा है। ऐसे में वन्यजीवों के सामने चौतरफा संकट खड़ा हो गया है।

पिछले तीन दशकों में दुनिया भर में जिराफ की संख्या घटकर आधी रह गई है। इस समय करीब 1,10,000 बचे हुए हैं। उनके संक्षरण के लिए काफी कदम उठाए गए हैं, बावजूद वन्यजीवों का संकट बहुत बढ़ रहा है और शिकार पर पूरी तरह रोक नहीं लग रही है।

अपने भारत में भी वन्य जीवों की हालत ठीक नहीं है। उनकी संख्या लगातार घट रही है। 900 से भी ज्यादा प्रजातियां खतरे में हैं। विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी और वनस्पति एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हैं। एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। जैव विविधता बनी रहने से दुनिया मनुष्यों के लिए जीने लायक बनी रहती है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ़ नेचर (आईयूसीएन) की छठी रिपोर्ट के मुताबिक गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में जीव जंतुओं की संख्या बढ़ कर 683 हो गई है। कश्मीर में हंगलू की संख्या सिर्फ 200 रह गई है।

देश के दलदली क्षेत्र के बारहसिंगा हिरण अब मध्य क्षेत्रों के जंगलों में सीमित रह गए हैं। मालाबार गंध बिलाव की प्रजाति तो लगता है लुप्त ही हो गई है क्योंकि पिछले 3 दशकों से उसे देखा नहीं जा रहा है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि पश्चिमी घाट में वह है जिसकी संख्या मात्र 200 रह गई है। दुनिया का सबसे छोटा स्तनपाई सफेद दांत वाला छूछूंदर लुप्त हो रहा है। एशियाई शेर भी गुजरात के गिर जंगलों तक सीमित रह गए हैं।

अपने देश में समय-समय पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम और अभ्यारण्य बनाए गए। साथ ही आजादी के बाद से कस्तूरी मृग, हुंगल, गिर सिंह, बाघ, कछुआ, गैंडा, हाथी, गिद्ध और हिम तेंदुआ आदि के संरक्षण के लिए विभिन्न परियोजनाएं शुरू की गईं। इन विभिन्न परियोजनाओं के बावजूद शेर, बाघ, हाथी और गैंडे अपने वजूद बचाए रखने के लिए काफी संघर्ष कर रहे हैं।

वर्ल्ड वाइल्ड फंड लंदन की जू लॉजिकल सोसाइटी की हालिया रिपोर्ट चिंता में डूबा देने वाली है कि बहुत जल्द ही धरती से दो तिहाई वन्यजीव खत्म हो जाएंगे। करोड़ों साल से अपनी गोद में अनंत जीव जंतुओं को जीवन देती आई धरती की क्षमता भी घटती जा रही है। जलवायु परिवर्तन, मानवीय गतिविधियों में वृद्धि, अंधाधुंध उपयोग की प्रवृत्ति का भयावह विकास और बढ़ती आबादी और मनुष्य की बढ़ती क्रूरता के कारण अनेक जीवों का वजूद खतरे से घिर गया है।

वन्य जीवों के संरक्षण के लिए केवल सरकारी योजनाएं काफी नहीं है। लोगों को अपने सोच बदलने होंगे और मनुष्य को स्वयं को अधिक से अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक वन्य जीवों में 58 फीसदी कमी आई है। हाथी और गोरिल्ला जैसे लुप्तप्राय जीवों के साथ गिद्ध और रेंगने वाले जीव तेजी से खत्म हो रहे हैं।

कहा जाता है कि अपने देश में स्तनपाई जीवों की 350 प्रजातियां थीं। इसी के साथ पक्षियों की 1250 प्रजातियां, 150 तरह के उभयचर, 2100 प्रजातियों की मछलियां,60 हजार प्रजातियां के कीड़े मकोड़े, 4 हजार से अधिक प्रजातियों रीढ़ वाले जीव पाए जाते थे। वे सब धीरे धीरे मनुष्यों की लापरवाही और उनकी संवेदन शून्यता के साथ उनकी बढ़ती क्रूरता के कारण न केवल खत्म हो रहे हैं बल्कि जैव विविधता का ताना बाना ही पूरी तरह नष्ट होने की ओर अग्रसर है।

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