बल है तो जल है, जल है तो कल है: भाग 2
✍अमित जोगी
A. महानदी के साथ तीन महा-अन्याय
मध्य और दक्षिण बस्तर और सरगुज़ा को छोड़, छत्तीसगढ़ के शेष 28 में से 18 ज़िलों की जीवनदायिनी महानदी और उसकी सहायक नदियाँ हैं। प्रदेश की 70% से अधिक आबादी महानदी-बेसिन के पानी पर अपने जीवनयापन के लिए पूर्णतः निर्भर है। महानदी धमतरी ज़िले के सिहावा के परसिया गाँव की घाटी से निकलकर 858 किलोमीटर दूरी का लंबा सफर तय करके ओडिशा के पूरी जिले में पहुँचकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हसदेव, शिवनाथ, अरपा, जोंक और तेल है और ओडिशा के संबलपुर में महानदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हीराकुंड बांध बना है। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो छत्तीसगढ़ के हर बच्चे को पढ़ाई जाती हैं। लेकिन महानदी के बारे में 3 ऐसे भौगोलिक तथ्य भी हैं जो उनको किसी पाट्यक्रम में पढ़ाए तो नहीं जाते हैं लेकिन जो निर्विवादित रूप से छत्तीगसढ़ के साथ पिछले 67 सालों से हो रहे घोर अन्याय को चिख-चिखकर बयान करते हैं।
1. महानदी का 53.9% कैचमेंट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) छत्तीसगढ़ तथा 46.1% कैचमेंट एरिया ओडिशा में है।
2. ओडिशा के सम्बलपुर जिले में लामडोंगरी और चांडली डोंगरी पर्वतों के बीच महानदी पर विश्व के सबसे बड़े कच्चे बांध हीराकुंड का 1953 में निर्माण किया गया था। हीराकुंड बांध की कुल जल संग्रहण क्षमता 8.136 KM3 है जो कि महानदी की कुल जल संग्रहण क्षमता 8.5 KM3 का 95.7% है। हीराकुंड बांध के जल से ओडिशा के 75000 KM2 कृषि भूमि को सींचा जाता है। हीराकुंड बांध में महानदी का औसतन 40773 मिलीयन क्यूबिक मीटर जल प्रतिवर्ष आता है जिसमें से 86.59% (35308 मिलीयन क्यूबिक मीटर) जल छत्तीसगढ़ से आता है। इस के बावजूद छत्तीसगढ़ मात्र 4.3% महानदी के संग्रहित जल का उपयोग करता है जबकि शेष 95.7% का उपयोग ओडिशा धड़ल्ले से कर रहा है।
3. छत्तीसगढ़ सरकार अब तक दावे करती आई है कि छत्तीसगढ़ के महानदी बेसिन में शुद्ध सिंचित क्षेत्र का रकबा बढ़ा है लेकिन यह बढ़ा नहीं है बल्कि 54% घटा है। केंद्र सरकार के जल संसाधन विभाग के अधीनस्थ सेंट्रल वाटर कमिशन (CWC) द्वारा प्रत्येक दो वर्षों के अंतराल में देश की सभी नदियों के सिंचाई के स्त्रोत, कृषि का रकबा, भूमि उपयोग जैसे महत्वपूर्ण जानकारी भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग से संगठित करने वाली जल वैज्ञानिकी आंकड़ा पुस्तक (इंटीग्रेटेड हैड्रोलोजिकल बुक) इस बात की पुष्टि करते हैं। राज्य सरकार ने ग़लत जानकारी देकर न केवल प्रदेश की जनता को गुमराह किया है बल्कि अंतर्राजीय नदी जल विवाद अधिनियम की धारा 9(अ) का उल्लंघन भी किया है। महानदी के जल उपयोग और महानदी बेसिन के कुल सिंचित क्षेत्र की ताजा स्थिति पर सरकार को तत्काल श्वेतपत्र जारी करना चाहिए।
B. महानदी के इतिहास के तीन अध्याय
छत्तीसगढ़ में महानदी के जल के उपयोग के इतिहास के 3 अध्याय है:–
- 1. 1979 में पं. श्यामाचरण शुक्ल द्वारा धमतरी में 1.77 KM3 की क्षमता के गंगरेल बांध का निर्माण किया गया था। इस बांध का प्रमुख उद्देश्य प्रदेश के मैदानी इलाक़ों के किसानो को सिंचाई के साथ-साथ भिलाई स्टील प्लांट को पानी देना था। गंगरेल छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा और बड़ा बांध है किन्तु फिर भी हीराकुंड से 8 गुना छोटा है।
- 2. 2002 में मेरे पिताजी द्वारा महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी हसदेव के जल को हसदेव-बांगो सिंचाई परियोजना के माध्यम से जांजगीर-चांपा जिले में 7000 कि.मी. लम्बा बड़ी और छोटी नहरों का जाल बिछाकर 6730 KM2 खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंचाया गया था। (हसदेव-बांगो बांध का निर्माण 1962 में किया गया था किन्तु नहरों का जाल 40 वर्षों बाद 2002 में बिछा। इसके पूर्व इस बांध के पानी का उपयोग प्रमुख रूप से कोरबा में स्थापित BALCO, NTPC और CSEB जैसी फैक्ट्रियों द्वारा ही किया जाता था।) इसके साथ ही मोगरा और समोदा व्यपवर्तन परियोजनाओं के ज़रिए क्रमशः राजनांदगाँव और रायपुर-बलोदा बाज़ार ज़िलों की सिंचाई क्षमता भी लगभग दुगनी करी गई थी।
- 3. 2010 में डॉ. रमन सिंह ने शिवरीनारायण से साराडीह के बीच महानदी में 6 बैराजों का निर्माण करवा के उनका सम्पूर्ण जल जांजगीर-चाम्पा जिले में निजी कम्पनियों द्वारा लगाये गए बिजली उद्योगों को देने का निर्णय लिया था। साथ में उन्होंने मोगरा और समोदा व्यपवर्तन परियोजनाओं के पानी को भी राजनांदगाँव के केमिकल (रसायनिक) और रायपुर और बलोदा बाज़ार के सिमेंट उद्योगों को डाईवर्ट कर दिया था। इस प्रकार रमन सरकार ने जल पर पहले उद्योगों और बाद में किसानों का अधिकार स्थापित करने की अलिखित नीति निर्धारित करी जिसके सुखद परिणाम देखने को नहीं मिले हैं।
पिछले एक दशक में अंधाधुन औद्योगिकीकरण से भूजल के मनमाने दोहन के कारण भूजल स्तर में चिंताजनक गिरावट आई है। साथ ही नई खदानों को खोलने के चक्कर में वनों और वन-वासियों को बड़ी बेदर्दी से उजाड़ा गया है। इस कारण न केवल वर्षा पर प्रभाव पड़ा है बल्कि भूमि की जल धारण क्षमता भी घटी है। ग्रीष्मकाल में छत्तीसगढ़ में जल संकट की समस्या और भी भयावह रूप ले लेती है। कुछ गांव कस्बों में गर्मियों में लोगों को एक-एक बाल्टी पानी के लिए संघर्ष करते कई बार देखा गया है।
C. महानदी पर महा-भारत
महानदी पर बने इन 6 बैराजों को लेकर ओडिशा को कड़ी आपत्ति है। 2016 में ओडिशा सरकार ने इन बैराजों का निरीक्षण करने हेतु एक जांच दल भी छत्तीसगढ़ भेजा था जिसका मेरी पार्टी और मैंने जल सत्याग्रह और काले झंडे दिखाकर विरोध किया था हालाँकि तत्कालीन रमन सरकार के सिंचाई मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल ने इस घुसपैठिए जाँच दल को राजकीय अतिथि घोषित कर दिया था! (विडीओ देखें) इसके बाद 2017 में ओडिशा ने इनके निर्माण पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 23 जुन 2018 को उच्चतम न्यायलय ने ट्रायब्यूनल गठन करने का आदेश पारित कर दिया। ओडिशा के मुख्य मंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ में महानदी पर सभी प्रस्तावित और निर्माणाधीन कार्यों को रोकने का आदेश पारित करने की मांग भी करी है। इस पर छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ़ से क्या प्रतिक्रिया हुई है, इसका कोई अता-पता नहीं है।
अत्यंत शर्मनाक है कि जहाँ महानदी ओडिशा की राजनीति का प्रमुख मुद्दा बन चुका है, वहीं छत्तीसगढ़ के अस्तित्व से जुड़े इस सबसे गम्भीर मुद्दे पर प्रदेश के दोनों राष्ट्रीय दल प्रखर होने की जगह मौन धारण किए बैठे हैं। महानदी के जल पर छत्तीसगढ़ वासियों को अधिकार दिलाने की रणनीति बनाना तो दूर की बात है, आज राज्य सरकार के पास महानदी पर कोई नीति तक नहीं है। ऐसा आभास होता है कि अपने अधिकारों के लिए लड़ने की जगह छत्तीसगढ़ सरकार दिल्ली और भुवनेश्वर के सामने हाथ खड़े करके आत्मसमर्पण कर चुकी है!
मेरा मानना है कि महानदी के जल का मसला छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच ZERO SUM GAME (शून्य राशि का खेल) नहीं हो सकता है जिसमें एक राज्य को जीतने के लिये दूसरे राज्य को हारना ही पड़ेगा। मेरी इस मान्यता का आधार भौगोलिक है। महानदी की कुल जल क्षमता 66.9 KM3 है जिसमें से लगभग 50 KM3 (74.7%) का उपयोग किया जा सकता है। जबकि वर्तमान में मात्र 17 KM3 (25.4%) का ही उपयोग हो रहा है। इसी प्रकार वर्तमान में महानदी की जल संग्रहण मात्रा 8.5 KM3 है जिसको 13.5 KM3 बढ़ाकर 25 KM3 किया जाना प्रस्तावित है।
राजनीति का चश्मा हटाकर ओडिशा की जनता को इस भौगोलिक तथ्य को समझना पड़ेगा कि वर्तमान में मात्र 25.4% महानदी के जल का उपयोग ही दोनो राज्य छत्तीसगढ़ और ओडिशा क्रमशः 5:95 के अनुपात में कर पा रहे हैं जबकि 74.7% जल का उपयोग करना अब भी बाक़ी है। ऐसे में यह कहना की छत्तीसगढ़ द्वारा महानदी पर जल संग्रहण, सिंचाई एवं बिजली परियोजनाओं के चालू होने से हीराकुंड बांध सूख जायेगा और ओडिशा के किसान बरबाद हो जाऐंगे न केवल भौगोलिक तथ्यों से परे है बल्कि बेहद हास्यापद भी है।
महानदी केवल नाम मात्र की महानदी नहीं है। वह वास्तव में एक महान नदी- ‘महा-नदी’है जिसमें दोनों राज्यों की सभी जायज आवश्यकताओं की पूर्ति करने की पूरी क्षमता है। ऐसे में दोनो राज्यों के बीच महानदी के जल के उपयोग को लेकर सैद्धांतिक सहमति स्थापित करने की जरूरत है।
D. महानदी का मानव-अधिकार
हमारे देश में सुरक्षित पेयजल का अधिकार संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अंतर्गत धारा 21 में निहित जीवन के अधिकार का ही एक भाग है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार पिछली पीढ़ी को आने वाली हर पीढ़ी के लिए प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करनी चाहिए। वह जैव विविधता का संरक्षण करे और जल समेत सभी प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह उपयोग करे कि यह भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें। अनुच्छेद 15(2) पानी के स्रोतों के समान उपयोग का अधिकार प्रदान करता है। इन संवैधानिक प्रावधानों में स्पष्ट उल्लेख न होने के कारण अनेक बार जल के मानवाधिकार के उल्लंघन की प्रवृत्ति देखी जाती है। इसीलिए इन संवैधानिक प्रावधानों की समय समय पर की गई विभिन्न न्यायालयों द्वारा व्याख्या को आधार बनाकर एक कानून के माध्यम से जनता को जल का मानवाधिकार देने की आवश्यकता है।
इस संबंध में केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले में कहा है कि सरकार भूजल का दोहन नहीं कर सकती क्योंकि इससे भविष्य की संभावनाओं पर असर पडता है और यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम प्रो. एम.वी. नायडू के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि पानी एक सामुदायिक स्रोत है और इसे लोगों के हित में राज्य को सौंपा गया है ताकि वह पीढ़ीगत समानता के सिद्धांत का आदर करते हुए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे। साथ ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि जल का अधिकार प्राथमिक मानवीय आवश्यकताओं के लिए आवश्यक जल की मात्रा से सम्बंधित है। जबकि जल पर अधिकार किसी विशेष उद्देश्य के लिए पानी के उपयोग अथवा पानी की उपलब्धता से सम्बन्धित होता है।
E. महानदी के महा-यज्ञ के 10 मंत्र
इन संवैधानिक प्रावधानों और न्यायालयीन निर्णयों के प्रकाश में छत्तीसगढ़ और ओडिशा, दोनों की जनता को स्वच्छ, सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद पेयजल का अधिकार प्रदान करने और प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए 50 लीटर प्रति व्यक्ति के अंतरराष्ट्रीय आदर्श पैमाने के निकट पहुंचने और किसानों के खेतों तक पानी पहुँचाने के दोमुखी उद्देश से सामूहिक और समयबद्ध रणनीति तैयार करनी पड़ेगी। इसे तैयार करते समय 10 ऐसी बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना होगा जिस पर छत्तीसगढ़ के हित में कोई समझौता नहीं किया जा सकता:
- 1. महानदी के जल पर पहला अधिकार छत्तीसगढ़ का होना चाहिए और महानदी बेसिन में छत्तीसगढ़ के सींचित क्षेत्र के रकबे को कम नहीं होने से रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने पड़ेंगे।
- 2. प्रादेशिक स्तर पर छत्तीसगढ़ के जल स्रोतों और नदियों के जल पर छत्तीसगढ़ वासियों का सर्वप्रथम अधिकार स्थापित करना पड़ेगा।
- 3. अन्य राज्यों के साथ जल का साझा उपयोग करते समय छत्तीसगढ़ वासियों की मंजूरी लेना अनिवार्य करना होगा।
- 4. प्रायः यह देखा गया है कि अनुसूचित जाति, आदिवासी और वंचित समाज के निर्धन लोगों को स्वच्छ पेयजल और प्राथमिक आवश्यकताओं हेतु जल उपलब्ध नहीं हो पाता है। छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेशवासियों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में नाकाम रही है। सुपेबेड़ा के ग्रामवासियों को दूषित पेयजल के कारण अपनी किडनियां गंवानी पड़ रही हैं। इनमें से अनेक मरणासन्न हैं। प्रदेश के खनिज बहुल आदिवासी क्षेत्रों में भी नलकूपों से दूषित जल की आपूर्ति हो रही है जिसके प्रभाव सांघातिक हैं। इन्हें जल का मानवाधिकार देना हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता बनानी पड़ेगी।
- 5. जल के संरक्षण हेतु छोटे जलाशयों का निर्माण और रख-रखाव, वाटर हार्वेस्टिंग को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाना और उद्योगों द्वारा छोड़े जाने वाले दूषित जल का पुनः चक्रण तथा सघन वृक्षारोपण को प्राथमिकता देनी पड़ेगी।
- 6. जल के औद्योगिक उपयोग की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को क़ानूनी रूप से नियंत्रित करना होगा।
- 7. जल की स्वच्छता और सुविधा सुनिश्चित करने हेतु जल प्रदायकर्त्ता अधिकारियों और विभागों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी पड़ेगी।
- 8. भारत सरकार द्वारा तैयार किए गए ड्राफ़्ट मॉडल वॉटर बिल को प्रदेश में लागू करने के लिए आगामी बजट सत्र में विधेयक पारित कराया जाए ताकि पानी का उपयोग की पहली प्राथमिकता पेयजल, दूसरी प्राथमिकता अन्नदाता किसानों और तीसरी प्राथमिकता प्रदेश के विकास में सहभागी उद्योगों व अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए क़ानूनी रूप से निर्धारित की जा सके।
- 9. महानदी में बने बैराजों का पानी किसानों को प्राथमिकता से देना पड़ेगा।
- 10. हसदेव और सोन नदियों का पानी अरपा-भैंसाझार में लाने हेतु विस्तृत प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार को राष्ट्रीय नदी जोड़ो अभियान में सम्मिलित करने हेतु भेजना होगा जिस से कि बिलासपुर संभाग को बड़ते जल-संकट से बचाया जा सके।
इंतज़ार करिए, सोमवार, 24 फ़रवरी 2020 तक। : {भाग 3}