लेखक की कलम से
जीवनचक्र पर लग जाना है विराम …
मोह माया के
विशाल वट-वृक्षों के
नीचे पलते असंख्य पिण्ड
मानव देहों के
रूप में,
कोई भावपूर्ण जीवन का
राही, तो कोई
भावशून्य गति से,
बढते सभी उस लोक
जहाँ हो जाना है
अंत, एक दिन हरेक का
और जीवनचक्र पर
लग जाना है
विराम,
स्थाई, तर्कसंगत और
समयानुकूल भी
शायद!
यही है नियति
यही होना है अंत,
कोई झंझावातों से
बीतकर वहां पहुंचा
तो किसी को, प्रारब्ध के
प्रभाव से मिल गया
कुछ सुकून और
कुछ राहत।
परिचय : राजस्थान के बीकानेर में महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर, सेंटर फार वीमेन्स स्टडिस की डायरेक्टर, पिछले 18 वर्षों से अध्यापन व शोध का अनुभव, पत्रकारिता व जनसंचार में स्वर्ण पदक प्राप्त, 9 पुस्तकों का लेखन व संपादन हिन्दी व अंग्रेजी में देश के प्रमुख समाचार पत्रों में नियमित रचनाएं प्रकाशित.