इंदौर में 16 किलो चांदी के सिंहासन पर विराजें हैं अनूठे गणपति, अकौआ की जड़ से बनी प्रतिमा …
इंदौर। आपने संगमरमर समेत कई वस्तुओं से बनी गणेश प्रतिमा देखी होगी, लेकिन इंदौर में ऐसा मंदिर है, जहां भगवान गणेश की प्रतिमा सफेद आक (अकौआ) की जड़ से बनी हुई है। इस प्रतिमा को कर्फ्यू के दौरान जमीन खोदकर बाहर निकालकर सिलावटपुरा में 16 किलो चांदी के सिंहासन पर विराजित किया गया। यह गणेशधाम 38 साल पुराना मंदिर है। यहां सफेद आक की यह गणेश प्रतिमा तेजेश्वर चिंतामण गणपति के नाम से प्रसिद्ध है। इंदौर के ही नार्थ राजमोहल्ला में रहने वाले कोठारी परिवार ने मिट्टी और राई से अद्भुत गणेश प्रतिमा बनाई है। इन दोनों अनूठे गणपति के बारे में जानिए…
मंदिर में भगवान गणेश की सफेद आक की प्रतिमा 16 किलो चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं। वहीं, भगवान के समक्ष 6 किलो चांदी का मूषक भी है। इसके अलावा आसपास शुभ-लाभ और रिद्धि-सिद्धि भी हैं। मंदिर में शिव परिवार के साथ राम दरबार भी है। मंदिर में साध्वी ऋतंभरा, कनकेश्वरी देवी, अवधेशानंद महाराज सहित कई साधु-संत आ चुके हैं।
मंदिर के पुजारी कबीर राठौर ने बताया कि प्रतिमा को ब्रह्मलीन तेजकरण राठौर द्वारा 4 सितंबर 1984 में कर्फ्यू में हरसिद्धि फूल मंडी में जाकर जमीन खोदकर निकाला। इसके बाद सिलावटपुरा में गणेशधाम में स्थापना की। भगवान गणेश की यह प्रतिमा सफेद आक के पेड़ से स्वनिर्मित है। इनकी ऊंचाई 3 फीट है। भगवान की सूंड 2 फीट की है। 4 हाथ और दो पैर हैं। गणेशजी पद्मासन अवस्था में हैं।
उन्होंने बताया कि मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। यहां इंदौर के अलावा खंडवा, खरगोन, उज्जैन, धार, राजस्थान, दिल्ली, मुंबई समेत विदेशों से भक्त आते हैं। उन्होंने कहा कि हर वर्ष सिडनी के एक भक्त गणेश चतुर्थी पर आते हैं। इसी प्रकार नाइजीरिया में रहने वाले भक्त भी यहां हर साल दर्शन करने आते हैं।
इधर, इंदौर के नॉर्थ राजमोहल्ला में रहने वाले कोठारी परिवार ने मिट्टी और राई से अद्भुत गणेश प्रतिमा बनाई है। 71 साल की उर्मिला कोठारी और उनके 72 साल के पति विष्णु कोठारी ने प्रतिमा को बनाया है। दरअसल, उर्मिला कोठारी गणेश उत्सव के पूर्व भगवान गणेश को विराजित करने के लिए मिट्टी और पत्थर के मदद से घर में ही पहाड़ का निर्माण कर रही थीं, तभी पहाड़ की आकृति उन्हें भगवान गणेश के जैसी लगने लगी।
इसके बाद उन्होंने पहाड़ के बजाए भगवान गणेश की प्रतिमा बनाने का निश्चय किया। देखते ही देखते ही मिट्टी और राई से इस अद्भुत प्रतिमा का निर्माण किया। इसमें उनके पति ने भी मदद की। उन्होंने गीली मिट्टी में राई डालकर गणेश प्रतिमा का आकार दिया। जब राई अंकुरित हुई, तो यह एक प्रतिमा के रूप में नजर आने लगी। हालांकि इसमें सिर्फ भगवान की आंखों को ही बाजार से लाया गया है, जबकि उनका तिलक भी मिट्टी, कुमकुम और चमक की मदद से बनाया गया है। दांत दर्शाने के लिए सफेद रंगोली का इस्तेमाल किया है।
उन्होंने बताया कि सालों से उन्हें भगवान के श्रृंगार का शौक रहा है। वे हर त्योहार पर भगवान का अलग-अलग तरह से श्रृंगार करती हैं। हालांकि, वे इसके लिए बाहर से कुछ नहीं लाती। घर की वस्तुओं और पेड़ों की पत्तियों का इस्तेमाल करके श्रृंगार करती आ रही हैं। उन्होंने कहा- वह घर में लगे पारिजात के फूलों का इस्तेमाल कर खुद ही भगवान के लिए माला बनाती हैं। उनका मानना है कि उनके यहां जितने भी फूल आते हैं, वह वेस्ट ना हों।
उर्मिला गणेश उत्सव पर रोजाना भगवान गणेश को 1111 दूर्वा मंत्रों के साथ अर्पित करती हैं। वे सभी दूर्वाओं को अलग करती हैं। एक-एक कर भगवान को अर्पित करती हैं। दूर्वा बनाने और उसे अर्पित करने सहित भगवान का पूजन-अर्चन करने में उन्हें करीब 4 घंटे का वक्त लगता है। जैसे-जैसे लोगों को यहां का पता चल रहा है। वे दर्शन करने आ रहे हैं।