संघर्ष जीवन का …
संघर्ष शुरू होता जीवन का
मां के करुण चीत्कार से ।
फिर माहौल उल्लासित हो जाता
नवजातके किलकार से ।।
फिर स्पर्धा शुरू होता अनुज
और अग्रज संग खिलवाड़ से ।
और खुशी तब मिलती
उनके झूठ मुठ के हार से ।।
खेल खिलौनों कि वह चाहत
मात-पिता पर दबाव से ।
असीम सुकून तब मिलता
जिद पूरा होने के ख्याल से ।।
यहां तक तो सब अपने थे
जीतता रहा अपनों के दुलार से ।
अब आगे की खुली चुनौती
जीतें किस अधिकार से ।।
अस्पर्ध शुरू होता अब
स्कूल और कॉलेज के जमात से ।
वहां न कोई भाई-बंधु
जीतना अपने ही संस्कार से ।।
आगे की अब कठिन लड़ाई
आरक्षण की मार से ।
जाति धर्म संप्रदाय की खाई
लड़े किस हथियार से ।।
जैसे-तैसे चलती नैया
समाज और समाजवाद से ।
कभी सरकारी हंटर या फिर
कभी अपराध और भ्रष्टाचार से ।।
फिर परिवार का बोझ लिए
रोजी रोटी के इंतजाम से ।
मन में आशा लिए हुए
खुशहाली के इंतजार से ।।
समाज परिवार की आशा पर
खरा उतरने की कोशिश से ।
अपने तन-मन को जला रहे हैं
खरा उतरने की कोशिश से ।।
हम मानव है हम इंसा हैं
हम में है कुछ गुण-दोष ।
कभी सही या कभी गलत
करा देते हैं ये गुण- दोष ।।
जीवन जीने का वह जज्बा
समाज और परिवार संग ।
आदि से मानव बनाता है वह जज्बा
समाज और परिवार संग ।।
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें
मानव में मानवता ला देता है ।
अपनों संग जुड़े रहने की
ललक वही जगाता है ।।
अपनों की वह मीठी यादें
याद रहती है सालों साल ।
याद उन्हें कर हम
सिसकते रहते सालों साल ।।
जीवन का बस एक सत्य है
एक ना एक दिन मिट्टीमें मिल जाना ।
जब तक तन में सांस रहे
अपनों पर ही सर्वस्व लुटाना ।।3
©कमलेश झा, फरीदाबाद