मध्य प्रदेश

लीक हुए कारम डैम से खाली हुआ ‘खतरे’ का पानी, धार के 16 गांवों से तबाही का संकट टला, 2 गांवों पर अभी भी मंडरा रहा खतरा, अब नर्मदा किनारे अलर्ट …

भोपाल/इंदौर। मध्यप्रदेश के धार जिले की धरमपुरी तहसील के कोठिदा गांव में कारम नदी पर बन रहे और लीकेज कारम डैम से अब पानी का बहाव कम हो गया है। इससे इससे दो मीटर चौड़ी चैनल अचानक 50 फीट चौड़ी हो गई। इससे पानी निकासी काफी तेज हो जाने से आसपास बाढ़ जैसे हालात हो गए। डैम में पानी कम हो जाने से अब खतरा टल गया है। डैम से ज्यादातर पानी खाली हो चुका है। डैम में लीकेज के बाद पानी खाली करने के लिए चैनल बनाई गई थी। रविवार शाम इस चैनल के पास बांध की वॉल धंसने लगी।दो गांवों व खेतों में पानी भर गया। एक निर्माण एजेंसी का सीमेंट कंक्रीट का प्लांट भी डूब गया। हालांकि, प्रशासन ने दावा किया कि किसी भी गांव में पानी नहीं भरा और कहीं से कोई नुकसान की खबर नहीं है।

कारम नदी पर निर्माणाधीन डैम का पानी खाली होने से धार जिले के 16 गांवों ने राहत की सांस ली है। प्रशासन का पूरा फोकस अब खरगोन जिले के कारम नदी के अंतिम छोर पर बसे जलकोटा और बड़वी गांव पर है। कारण- दोनों गांव जलमग्न हो सकते हैं। महेश्वर के 6 गांवों की बिजली काट दी गई है। यहां से अफसरों ने जलकोटा की ओर कूच कर लिया है। दरअसल, कारम नदी आगे जाकर नर्मदा में मिलती है, इसका पानी नर्मदा में जाएगा, जबकि नर्मदा नदी पहले से ही उफान पर है।

सीएम शिवराज सिंह ने कहा कि निर्माणाधीन कारम बांध के कारण पैदा हुआ अप्रत्याशित संकट टल गया है। कुशल रणनीति से हम तबाही से मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं की भी जिंदगी बचाने में भी सफल रहे। लोग अपने गांव लौटने की तैयारी करें। आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाएं। कलेक्टर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की जलकोटा के ग्रामीणों से फोन पर बात कराई। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब चिंता की कोई बात नहीं। आप लोगों ने प्रशासन को सहयोग दिया, इसके लिए आप बधाई के पात्र है। आप लोगों के धैर्य से शासन-प्रशासन को बड़ी मदद मिली है। उन्होंने ग्रामीणों से प्रशासन की व्यवस्थाओं के बारे में भी जाना।

कारम डैम से तेज गति से पानी के बहाव के बाद एबी रोड पर दो घंटे तक ट्रैफिक बाधित रहा। रात करीब 10 बजे शुरू कर दिया गया। धार के कलेक्टर ने बताया कि एबी रोड का जलस्तर, जो पुल के ऊपर से 3 फीट तक आ गया था, वो अब पुल के ऊपर से 14 फीट नीचे है।

नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा- शिवराज सिंह की सरकार घोटालों की सरकार है। इनके कार्यकाल में करोड़ों घोटाले हो चुके हैं। भ्रष्टाचार की गंगा श्यामला हिल्स से बह रही है। इस सरकार के दौरान कई डैम और प्रॉजेक्ट्स घोटालों की भेंट चढ़े हैं। मध्यप्रदेश सरकार पर साढ़े 3 लाख करोड़ का कर्जा है। डैम की निर्माण कंपनी भिंड जिले की है। इसका रजिस्ट्रेशन ग्वालियर में हुआ है। कंपनी का नाम सार्थी कंस्ट्रक्शन। पहले भी टेंपरिंग मामले में इसी कंपनी का नाम आया था। इस कंपनी ने भिंड में 30 करोड़ की जलयोजना बनाई थी। सारा पेमेंट हो गया था, लेकिन अभी तक वहां कुछ भी लोगों को नहीं मिला।

पूर्व सीएम कमलनाथ ने मामले की जांच के लिए कांग्रेस की समिति गठित की। इसमें जिले के विधायकों समेत खरगोन जिले के विधायकों को भी शामिल किया गया। समिति दोपहर 3 बजे मौके पर पहुंची। डैम का निरीक्षण कर कहा कि भ्रष्टाचार हुआ है। इसकी जांच रिपोर्ट शीघ्र उच्च स्तर भेजी जाएगी। समिति में विधायक उमंग सिंघार, पांचीलाल मेड़ा, डॉ. विजय लक्ष्मी साधौ, डॉ. हीरालाल आदि पहुंचे थे। इसके पूर्व नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने भी यहां पहुंचकर निर्माण पर सवाल उठाए।

डैम के अंदर वाले हिस्से में पाल को सुरक्षित करने मिट्टी बिछाते समय 12 मीटर के बाद मुरम से पिचिंग की गई। दूसरी तरफ मुरम की लेयर नहीं बिछाई। 10 किमी के कैचमेंट एरिया में जलस्तर बढ़ने लगा तो नहर के लिए लगाए गए वॉल्व को नहीं खोला गया। जब डैम में दरार आने के बाद पानी का रिसाव शुरू हुआ तब उस वॉल्व को खोलने पहुंचे। इसका मेंटेनेंस नहीं होने से 48 में से 24 नट ही खुल पाए, जिससे पानी का प्रेशर बढ़ता गया और डैम को फोड़ने की नौबत बन गई। जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट की निगरानी में बांध का पानी निकालने के लिए कैनाल बनाने का काम शुरू हुआ था। 48 घंटे तक 6 पोकलेन और मशीनरी चलाने के नाम पर 30 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। देर शाम डैम की पाल काे तोड़ने के लिए मशीनें लगाई गईं।

डैम के निर्माण में हुई लापरवाही के बारे में जानकारों का कहना है कि इस बांध में बड़ी गलती कंस्ट्रक्शन की गलत प्लानिंग है। जहां से रिसाव हुआ है, वहां का काम सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होता है। इसे नाले का काम कहते हैं। यह काम एक साल का होता है और बारिश से पहले पूरा कर लिया जाता है। नदी गहरी होने से उसका पाट भी गहरा है। ऊंचाई अधिक और चौड़ाई कम है। संभवत: काम की गति धीमी होने से यह सब कुछ हुआ है।

विभाग के ही सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर सुधीर सक्सेना ने बताया कि जिस साल बांध बनाया जाता है, उस साल पूरा नहीं भरते। जितने बांध अब तक मैंने देखे हैं, सबके लिए अलग तरह की डिजाइन होती है। बांध में कितना पानी हो, यह उसकी डिजाइन पर निर्भर करता है। यह जरूर है कि पहले साल में पूरी क्षमता से पानी नहीं भरा जाता। यह बहुत सामान्य ज्ञान की बात है। अब यदि निर्माणाधीन डेम है तो फिर सोचा जा सकता है कि इतना पानी कहां से आया। इसकी व्यवस्था क्यों नहीं की।

जल संसाधन विभाग के धार ईई बीएल नीनामा का कहना है कि डैम में पानी बढ़ने पर लगाए गए मीटर से भी इसकी जानकारी मिल गई थी। पानी अचानक से बढ़ेगा इसका अंदाजा नहीं था। पानी बढ़ने से हुई समस्या को लेकर प्रशासन को अवगत कराया था। जनहानि की आशंका को देख ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुनादी करा दी थी।

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