धर्म

कई मायनों में खास है सूरजकुंड, सूर्योदय के समय का दृश्य मनोरम …

नर्मदा परिक्रमा भाग -4

अक्षय नामदेव। हम चंदनघाट से रवाना हो गए और डिंडोरी की ओर बढ़ने लगे पर हमें डिंडोरी नहीं जाना था। डिंडोरी शहर में प्रवेश करने के पूर्व बाई ओर जाने वाली सड़क में हम चले गए और चाबी गांव होते हुए आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में बड़ी संख्या में साइकल और पैदल छात्र-छात्राओं की टोलियां स्कूल से लौट रही थी। अंदाजा हो गया शाम के 4:00 बज रहे हैं। बड़ी मात्रा में छात्राओं को पैदल चलते देख राम निवास तिवारी ने सवाल किया? मध्य प्रदेश में सरस्वती साइकिल योजना लागू नहीं है क्या? उनका सवाल लाजमी था परंतु मैं और कहीं खोया था! मुझे अपने बच्चों की याद आ रही थी। दरअसल उस समय तक हमारे विद्यालय के कक्षा 9 के बच्चों को भी सरस्वती साइकिल योजना की साइकल नहीं मिली थी।

बहरहाल रामनगर, मधुपुरी होते हुए हम पद्मिनी चौराहा पहुंच गए और हम डिंडोरी जिले को पार कर मंडला जिले में प्रवेश कर चुके थे। परिक्रमा का पथ ही ऐसा है कि डिंडोरी के पास से गुजरने के बावजूद हम वहां नर्मदा तट का दर्शन किए बगैर आगे पढ़ने को विवश थे। डिंडोरी में नर्मदा का तट अत्यंत साफ सुथरा एवं सुंदर है। डिंडोरी में बड़े भैया की ससुराल है इसलिए अनेक बार डिंडोरी आना-जाना हुआ है। इस बीच स्वाभाविक रूप से मां नर्मदा के तट का दर्शन एवं स्नान करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। डिंडोरी में नर्मदा तट पर अत्यंत धार्मिक वातावरण रहता है। मध्यप्रदेश शासन ने डिंडोरी शहर के अंदर शराब पर प्रतिबंध लगा रखा है। इतनी दूरी तय करने तक सूर्यनारायण अस्तांचल की ओर थे मतलब शाम होने को आई थी और हमें सूर्यास्त के पूर्व किसी जगह पर विश्राम करना था। विशेष परिस्थितियों को छोड़कर परिक्रमा वासियों के लिए यह नियम है कि सूर्य अस्त होने के पूर्व ही आप अपना डेरा कहीं डाल दें। आगे की गाड़ी में चल रहे घनश्याम सिंह ठाकुर झिरना वाले जो लगभग 5 बार पहले ही नर्मदा परिक्रमा कर चुके हैं उनकी गाड़ी में कृष्ण प्रपन्नाचार्य बैठे थे।

उन्होंने आपस में सलाहकर गाड़ी को मंडला के पहले नर्मदा तट सूरजकुंड की ओर गाड़ी घुमा दी। तब तक अंधेरा हो चुका था और जब हम सूरजकुंड परिसर पर पहुंचे तो वहां घंटा घड़ियाल बज रहे थे। अगरबत्ती एवं धूप की खुशबू से पूरा परिसर गमक रहा था। परिसर में रोशनी पर्याप्त थी। सामने देखा हनुमान का भव्य मंदिर है। हमारी गाड़ी खड़े होते ही मंदिर परिसर में खड़े मंदिर के कार्यकर्ता ने आकर पूछा आप परिक्रमा वासी हैं क्या? जी, हम ने उत्तर दिया। तब तो आप वहां सामने बने सामुदायिक भवन में चले जाइए वहां परिक्रमा वासियों के रुकने की व्यवस्था है। उनकी बात सुनकर हम सूरजकुंड मंदिर परिसर में बने सामुदायिक भवन में चले गए। बढ़िया साफ सुथरा सुंदर हाल था ।अंदर रसोई भंडार कक्ष, बरामदा, व्यवस्थित रूप से था।

हमारे पहुंचते ही मंदिर परिसर के कार्यकर्ताओं ने हमारी संख्या के हिसाब से गद्दे बिछा दिए। हम अपना सामान दीवार से सटाकर रखकर कुछ देर के लिए आराम मुद्रा में लेट गए। दिन भर चलते रहने से कुछ थकान सी महसूस हो रही थी। हाल में अगल-बगल नजर घुमाई तो देखा अनेक परिक्रमा वासी अपना आसन जमाए मां नर्मदा की पूजा अर्चना में लगे हैं। नर्मदे हर कहकर हमने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और बिना देर किए परिसर में स्थित नल में स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर मां नर्मदा की पूजा अर्चना में लग गए।

परिक्रमा के दौरान नियम से सुबह एवं शाम मां नर्मदा की पूजन आरती आवश्यक होता है। परिक्रमा का संकल्प लेते समय माई की बगिया से एक पात्र में नर्मदा जल रखना होता है। इस पात्र में रखे जल की कुछ मात्रा परिक्रमा के दौरान पड़ने वाले नर्मदा तट के घाटों में डालना पड़ता है और वहां से कुछ जल पात्र में भरना पड़ता है। यह प्रक्रिया पूरी नर्मदा परिक्रमा के दौरान चलती रहती है। परिक्रमा वासी को पात्र में रखे नर्मदा जल की सुबह शाम आरती पूजा आवश्यक रूप से करनी पड़ती है। इसी पूजा पाठ के बीच मंदिर समिति का एक जिम्मेदार कार्यकर्ता हमारे बीच आया और कहा,आज हमारे रसोईया नहीं आए हैं आप रसोई का उपयोग कर अपना भोजन बना ले। भंडार में रखी सामग्री का उपयोग कर ले। मंदिर के कार्यकर्ता की इस जानकारी के कुछ देर बाद हमारे परिक्रमा दल की वरिष्ठ सदस्य बिसेन चाची, श्रीमती मधु, गंगोत्री, कल्पना, निरुपमा एवं मैंकला ने रसोई की कमान अपने हाथ में ले ली। बीच-बीच में मंदिर का कार्यकर्ता आवश्यक सहयोग करता रहा। रात लगभग 10:00 बजे हमारा भोजन तैयार हो चुका था। हमने एक साथ बैठकर भोजन किया। दाल, चावल, रोटी, सब्जी। आनंद आ गया।

भोजन करने के उपरांत हम अपने अपने बिस्तर पर बैठ कर लेटने की तैयारी कर रहे थे कि सूरजकुंड मंदिर परिसर समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी सामूहिक रूप से हमसे मिलने आए। नर्मदे हर कह कर हाल में प्रवेश किए। आप लोगों ने भोजन कर लिया। हमने उत्तर दिया जी,, कर लिया। कोई परेशानी हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हैं। हम सभी पास के गांव में एक संत के भंडारा में गए थे इसलिए आप लोगों की सेवा में उपस्थित नहीं हो सके। हम ने जवाब दिया, नहीं,, बहुत अच्छी व्यवस्था है यहां। वे विनम्रता पूर्वक अभिवादन मुद्रा में नर्मदे हर का घोष कर चले गए। उनके जाने के बाद कब पलक लगी और कब सुबह हुई पता ही नहीं चला। जब जब उठे तो पता चला बिसेन चाची, विद्यावती गुप्ता बहन तथा श्रीमती अनुसूया चतुर्वेदी बहन सुबह सवेरे स्नान कर पूजा अर्चना से निवृत हो चुकी हैं। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि बिसेन चाची के पूजा-पाठी स्वभाव से मैं पूर्व में ही उत्तराखंड के चारो धाम यात्रा के दौरान से परिचित हूं। वे अवसर ढूंढते रहती हैं पूजा पाठ करने का। बाकी सदस्य भी दैनिक क्रिया, स्नान आदि से निवृत हो गए।

हम सब लोगों ने एक साथ जाकर मां नर्मदा तट सूरजकुंड का प्रातः कालीन दर्शन किया। दिन रविवार दिनांक 21 मार्च 2021,,,। यहां मां नर्मदा नदी उत्तर दिशा की ओर बही हैं। डिंडोरी से मंडला के बीच मां नर्मदा का बहाव कुछ ज्यादा ही घुमावदार है। सूरजकुंड के बारे में कहा जाता है कि नर्मदा नदी के भीतर एक कुंड था जिसमें प्रातः काल सूरज की परछाई दिखाई देती थी। वर्ष 1926 के आसपास आए बाढ़ के कारण वह कुंड दब गया परंतु फिर भी प्रातः काल सूर्योदय के समय सूरजकुंड नर्मदा तट का दृश्य अत्यंत मनोरम एवं आध्यात्मिक रहता है जिसे हमने वहां महसूस किया। वहां सूरजकुंड नर्मदा तट पर उपस्थित पुजारी ने बताया कि सूरजकुंड में नर्मदा स्नान से आरोग्य की प्राप्ति होती है। लगातार 6 महीने स्नान से कुष्ठ जैसा असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है। परिसर में स्थित विशाल हनुमान के मंदिर की खूबसूरती का क्या कहना। नर्मदा तट स्थित पुरवा (पिपरपनी) गांव सूरजकुंड मंडला जिले का प्रमुख तीर्थ स्थल है।

सूरजकुंड स्थित हनुमान का मंदिर अत्यंत प्राचीन है जिसके शिखर में सात घोड़ों पर सवार भगवान सूर्यनारायण हैं। मंदिर में स्थित हनुमान की प्रतिमा के बारे में बताया गया कि हनुमान की प्रतिमा अद्भुत है यह प्रतिमा सुबह बाल रूप में रहती है तथा दोपहर हनुमान युवावस्था में रहते हैं एवं शाम को वृद्धावस्था में। हमने हनुमान को प्रणाम किया। उनके समक्ष हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हम मंदिर परिसर का अवलोकन करने लगे।

मंदिर परिसर में हनुमान के ठीक सामने भोलेनाथ का मंदिर है तथा इसी भोलेनाथ के मंदिर के बगल में नागा संप्रदाय के महात्मा की समाधि लगी हुई है। हमें समझते देर नहीं लगी कि इतना बड़ा धार्मिक परिसर इन्हीं महात्मा कि त्याग और तपस्या का फल है। राम निवास तिवारी ने कहा कि किसी भी मंदिर का विकास एवं आयोजन साधु संत करते हैं तभी अच्छा लगता है। मंदिर और आश्रम की खूबसूरती साधुओं से ही है।हमने समाधि में जाकर माथा टेका। इसी समाधि के पास ही एक चबूतरे में बरगद एवं पीपल का विशाल वृक्ष एक साथ विद्यमान है जो परिसर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। सूरजकुंड का पूजन अर्चन करने के बाद हम वहां से आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गए। सुबह के लगभग 9:00 बज चुके थे इस बीच हमें वहां चाय भी पिलाई गई। जिस हाल में हम रुके थे वहां एक प्रौढ़ दंपत्ति परिक्रमा वासी रुके थे जो पैदल परिक्रमा पर थे। वे भी चलने की तैयारी में थे। मैंने चरण छू कर दोनों को प्रणाम किया तथा दक्षिणा दी। उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया और नर्मदे हर कहकर अपनी परिक्रमा पर निकल गए। हम उन्हें दूर तक जाते निहारते रहे।

 

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