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इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट ने किया बैन, खरीदारों की लिस्ट होगी सार्वजनिक

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव से करीब दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार एवं तमाम राजनीतिक दलों को करारा झटका लगा है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को खत्म कर दिया है, जिसे अप्रैल 2019 से लागू किया गया था। इसके अलावा राजनीतिक दलों को आदेश दिया है कि वे चुनावी बॉन्ड से मिली फंडिंग को वापस भी करें। अदालत ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड्स पर आज से ही रोक लगाई जाती है। 12 अप्रैल, 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड्स किन-किन लोगों ने खरीदे और कितनी रकम लगाई, यह जानकारी स्टेट बैंक को देनी होगी। अदालत ने कहा कि यह जानकारी पहले स्टेट बैंक की ओर से चुनाव आयोग को दी जाएगी। फिर आयोग की ओर से जनता को यह जानकारी मिलेगी। अदालत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की इस तरह की खरीद से ब्लैक मनी को बढ़ावा ही मिलेगा। इससे कोई रोक नहीं लगेगी और पारदर्शिता का भी हनन होता है।

बेंच ने कहा कि यदि ये इलेक्टोरल बॉन्ड बेनामी खरीद के तहत लिए जाते हैं तो यह सूचना के अधिकार के नियम का उल्लंघन है। हम इस संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन पर आंख बंद नहीं कर सकते। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि आखिर राजनीतिक दलों के पास पैसे कहां से आते हैं और कहां जाते हैं। बेंच ने कहा कि सरकार को चुनावी प्रक्रिया में काला धन रोकने के लिए कुछ और तरीकों पर भी विचार करना चाहिए।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स के खिलाफ दायर अर्जियों में कहा गया था कि इस तरह का नियम गलत है। इससे ब्लैक मनी खत्म नहीं होगा बल्कि बढ़ ही सकता है। वहीं सरकार का पक्ष था कि सिर्फ जनता के पास यह जानकारी नहीं रहेगी। सरकार, बैंक और आयकर विभाग के पास यह डेटा रहेगा। ऐसे में इससे किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती। सरकार के इस तर्क को अदालत ने खारिज कर दिया कि जनता को इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी न देने में कुछ गलत नहीं है। बेंच ने कहा कि ऐसा नियम तो आरटीआई का उल्लंघन है।

अदालत ने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि वह जिन राजनीतिक दलों को वोट देती है, उनके पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है। संविधान का उल्लंघन है, यदि जनता को चुनावी फंडिंग के बारे में जानकारी नहीं दी जा जाती। इस प्रकार शीर्ष अदालत ने 2018 में आई चुनावी बॉन्ड्स की व्यवस्था पर बड़ा फैसला दिया है। अदालत ने इस मामले में चुनाव आयोग की भी खिंचाई की और सवाल पूछा कि आखिर वह चुनावी बॉन्ड्स की जानकारी अपने पास क्यों नहीं रखता।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोली भाजपा, चुनाव आयोग पर भी बात

शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेता नलिन कोहली ने कहा कि इससे हमारे लिए कोई झटका नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे फंडिंग सिर्फ भाजपा को ही नहीं सभी दलों को मिल रही थी। कोहली ने कहा कि यदि अदालत ने स्कीम को रद्द किया है तो उसे लगा होगा कि इसमें कुछ गलत है। उन्होंने कहा कि अब चुनाव आयोग के सुझावों के साथ कोई नई चीज लाई जाए। यह जरूरी है कि चुनावी फंडिंग साफ-सुथरी हो और ब्लैक मनी पर रोक लगाई जाए। मूल मकसद यही है।

अदालत में क्या-क्या दी गईं दलीलें, RTI बना मुख्य सवाल

कंपनीज ऐक्ट और जनप्रतिनिधित्व ऐक्ट में संशोधन करते हुए चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था लाई गई थी। इसके तहत किसी भी दूसरे दल या फिर आम लोगों को चुनावी बॉन्ड की खरीद की जानकारी नहीं मिल सकती। अदालत में सुनवाई के दौरान जब यह सवाल उठा तो सरकार ने कहा कि यह जानकारी बैंक, आयकर विभाग के पास तो रहेगी ही। इस पर याचियों ने कहा कि भले ही दूसरे दलों को जानकारी न मिले, लेकिन जनता को तो पता चलना ही चाहिए। यह तो आरटीआई से भी बाहर है, जो गलत है।

चुनाव आयोग के साथ जानकारी साझा करेगा SBI

फैसला सुनाते हुए CJI ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी उजागर न करना मकसद के विपरीत है. एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक की जानकारी सार्वजानिक करनी होगी. एसबीआई को ये जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी. EC इस जानकारी को साझा करेगा. SBI को तीन हफ्ते के भीतर ये जानकारी देनी होगी.

नियम में थी एक प्रतिशत वोट मिलने की शर्त

योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसके मुताबिक चुनावी बॉण्ड को भारत का कोई भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती थी. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता था. जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड स्वीकार करने के पात्र थे. शर्त बस यही थी कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाता था. बॉन्ड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करने की अनिवार्यता होती थी. अगर पार्टी इसमें विफल रहती है तो बॉन्ड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाता था.

क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड

साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई. इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं.

क्यों जारी हुआ था इलेक्टोरल बॉन्ड

चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने साल 2018 इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी. 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता था.

क्या थी इलेक्टोरल बॉन्ड की खूबी

कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता था. ये व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान नहीं खोलती और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता था.

क्या फंडिंग में आई पारदर्शिता?

केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्श‍िता' बढ़ाने के लिए लाई गई.'

कैसे काम करते हैं ये बॉन्ड

एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता थी. जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1000 रुपए, 10000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते थे. ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता था.

भुनाने पर खाते में जाता था पैसा

सियासी दल एसबीआई में अपने खातों के जरिए बॉन्ड को भुना सकते हैं. यानी ग्राहक जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में देता था वह इसे अपने एसबीआई के अपने निर्धारित एकाउंट में जमा कर भुना सकता था. पार्टी को नकद भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाता और पैसा उसके निर्धारित खाते में ही जाता था.

KYC नॉर्म का होता है पालन

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और एकाउंट की डिटेल मिलती थी. इलेक्टोरल बॉन्ड में योगदान 'किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम' के द्वारा ही किया जाता था. सरकार ने जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड के नोटिफिकेशन जारी करते समय यह भी साफ किया था कि इसे खरीदने वाले को पूरी तरह से नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) नॉर्म पूरा करना होगा और बैंक खाते के द्वारा भुगतान करना होगा.

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