बेटी वो घर अंगना की …
बेटियों को दर्द नहीं
होता साहब
पत्थर की बनी
होती है ना
पराया धन कहकर
पल्ला झटक लो
तो कभी संस्कार के
नाम पर
सारी खुशियाँ समेट दो
क्या फर्क पड़ता है
पत्थर की हैं ना
बेटियों को दर्द नहीं
होता साहब
नफरत के इस
बाजार में वो नन्ही परी
जो ठीक से बोलना भी
सीख नहीं पाई अभी
तार -तार कर दिया रूह को भी
बेटी थी वो घर अंगना की
हैवानियत भी शर्मा
गई साहब
चर्चे कर लो
फिर भूल जाओ
क्योंकि बेटियों को दर्द
नहीं होता साहब
बहू बन के आई
क्या-क्या लाई
छिः धिक्कार है
कुछ भी नहीं
जीने न दो इसे
जला दो
जला भी दिया
बेटियां पत्थर की हैं ना
जलन नहीं होता इन्हें
इंसान हो तो
महसूस करो
जीती जागती करिश्मा हैं
बेहद हसीन हैं
बहुत ही प्यारा सा दिल
धड़कता है इनके अंदर
खुशियों की चाबी हैं ये
संभालना इन्हें
सहेजना इन्हें
जब दुख में होती हैं
तो दर्द होता है इन्हें
हाँ साहब बेटियां
पत्थर की नहीं होतीं
©श्वेता सिंह, गाजियाबाद, यूपी