श्रध्दा बिश्वास बढ़ावव न …
हे! प्रभु दीनदयाल,
कब राखबे तेहा हमर खियाल।
दुख दरद के मारे प्रभु,
कलाकार मन होगे बेहाल।।
कहिथे तोला दीनानाथ,
कब तक रहिबो हम अनाथ।
खाय पीए बर दाना नइ हे,
हिम्मत ह छोड़त हे साथ।।
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मानस के पावन गंगा ह प्रभु,
बोहाही कि नइ बोहाही।
तोर दरसन हे! परमात्मा,
ये जनम म कब हो पाही।।
हे!प्रभु रघुकुल भूषण,
घर के बेचागे जेवर,आभूषण।
लोग लइका मन भुखन मरत हे,
देवत हे करुण क्रंदन।।
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हे!प्रभु करुणा के सागर,
कब बरसहि दया के बादर।
तेहा कृपा के सागर स्वामी,
भरदे छोटकुन मोर गागर।।
सुने म नइ मिलत हे रमायन,
नन्दागे भागवत परायन।
धर्म के रक्षा कोन करही,
तोर छोड़े दूसर ह नारायण।।
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तोर मंदिर म तारा लग गे,
पूजा बर तरसत हे पुजारी।
दाना-दाना बर भिखारी तरसगे,
जेन बइठे तोर दुवारी।।
चक्र सुदर्शन ले के स्वामी,
अब तो धरा म आवव न।
बैरी कोरोना के नाश करके,
श्रध्दा बिश्वास बढ़ावव न।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)