लेखक की कलम से

वो ऐसी है …

मेरे रूठने से

वो जमाना हिला देती है

मेरे रोने पर

मां घर सर पर उठा लेती है

नादानियां अब तक

 नज़र अंदाज़ करती है

मेरा प्यारा बेटा

कह आंचल में छुपा लेती है

एक कतरा भर बूंद भी

नहीं गिरने देता मैं आंख से

उसके एक आंसू की

 बूंद मेरा कलेजा जला देती है

चुका नहीं सकता

“ओजस” मां के अहसानों को

वो खुद भूखी रह जाती

 मगर मुझे पेट बार खिला देती है

©राजेश राजावत, दतिया, मध्यप्रदेश                          

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