लेखक की कलम से

शक्ति वंदना …

 

हे कल्याणी कल्याण करो।

इस अदृश शत्रु से त्राण करो।।

 

हे नारायण की पराशक्ति,

ब्रह्मा को सर्जन बल देती।

श्री हरि से पालन करवाती,

शिव को संहारक बल देती।।

 

माँ ताप अग्नि की तुम ही हो,

जल की निर्मलता है तुमसे।

रवि को देती हो तेज सदा,

हिमकर की शीतलता तुमसे।।

 

तुम सकल सृष्टि संचालक हो,

तुम ही इस जग की पालक हो।

तुम पुण्यप्रदाता हो जग की,

माँ तुम ही भव अघघालक हो।

 

तुमने ही जग को उपजाया,

तुमसे ही आशा भारी है।

हे करुणामयी कृपा करिए,

ये शत्रु बड़ा भयकारी है।।

 

चण्डिका चण्ड संहारक उठ,

महिषासुर की वधकारक उठ।

कालिका कराल त्रिशूल उठा,

हे शुम्भ-निशुम्भ विदारक उठ।।

 

यह रक्तबीज सा बढ़ता है,

हे काली खप्पर ले आओ।

इसको समूल अब नष्ट करो,

निज जन पर माँ करुणा बरसाओ।

 

इसके भय से आक्रांत सभी,

हम भक्तों का भय दूर करो।

माधव की बिनती सुन माता,

निज भक्तों का दुख दूर करो।।

 

हे जगदम्बे मत देर करो,

फिर एक बार आ जाओ माँ।

अब बहुत हो गया हे दुर्गा,

दुर्गति को आन मिटाओ माँ।।

 

कमले कमलासन त्यागो अब,

अपनी समाधि से जागो अब।।

हे भयहारिणि मत देर करो,

भयमुक्त सभी के प्राण करो।।

 

©अशोक त्रिपाठी, शहडोल, मध्यप्रदेश

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