धर्म

भगवान शिव से शक्ति का कभी नहीं होता वियोग …

आगरा। श्रावण मास के पावन अवसर पर चल रही शिव महापुराण कथा का आज दूसरा दिन था। गोपाल धाम, दयालबाग़, आगरा में चल रही इस कथा में कोरोना गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है। सती जन्म की भूमिका बताते हुए कथावाचक डॉ. दीपिका उपाध्याय ने कहा कि मनुष्य तो क्या देवता भी मान अपमान की भावना से मुक्त नहीं हैं। ब्रह्मा के मन में उत्पन्न मोह पर जब भगवान शिव हस दिए तो ब्रह्मा को क्लेश हो गया। इसीलिए वे यह प्रयास करने लगे कि शिवजी भी विवाह बंधन में बंधें।

भगवान शिव की शक्ति माता जगदंबिका को उन्होंने देवी सती के रूप में अवतार लेने के लिए मनाया। माता सती और भगवान शिव का विवाह हुआ किंतु मानव को शिक्षा देने के लिए भगवान ने देवी को त्याग दिया। माता सती का त्याग यह भगवान शिव के औघड़ दानी होने का प्रमाण है। मनुष्य, ऋषि, देवता, दानव- ये सभी धन संपत्ति आदि का दान करते हैं लेकिन तीनों लोकों में एकमात्र भगवान शिव ही है जो अपनी ही त्रिगुणात्मिका शक्ति का भी त्याग कर सकते हैं।

दक्ष यज्ञ प्रसंग यह बताता है कि मनुष्य में जब तक भाव भक्ति नहीं तब तक कर्मकांड व्यर्थ है। प्रजापति दक्ष ने शिवभक्ति का त्याग कर कोरे कर्मकांड को अपनाया इसलिए उनका यज्ञ भी ध्वस्त हुआ और उनका सिर भी कट गया। भगवान शिव की कृपा से ही यज्ञ की पूर्ति हुई और दक्ष को बकरे का सिर मिला।

डॉ. दीपिका ने ऋषि दधीचि और राजा क्षुव की कथा बताते हुए कहा कि शस्त्र बल सदैव शास्त्र बल से पराजित होता आया है।

माता सती का दक्ष यज्ञ के अवसर पर कथन कलयुग में बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि कलयुग में दुखों का मूल कारण यह है कि यहाँ अपूज्यों की पूजा हो रही है इसीलिए समाज में दरिद्रता, भय और अकाल मृत्यु देखने को मिल रही है।

 कथा के दौरान विशाल शर्मा, लक्ष्मण दास कालरा, हरजीत सिक्का, दीपा लश्करी, मीनाक्षी श्रीवास्तव, रेखा अग्निहोत्री, डॉ. राहुल शर्मा, आदि उपस्थित रहे।

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