दोयम चरित्र …
आज हर कोई पर्यावरण
के बारे में ऊँची-ऊँची बातें,
कहेगा, या लिखेगा।
हर किसी के स्टेटस में,
हरा-भरा वृक्ष ही दिखेगा।
कोई पेड़ लगाने का,
झूठा स्वांग रचेगा ।
तो कोई मिट्टी के पात्र में,
चुल्लू भर पानी रखेगा।।
कोई चिड़ियों के लिए,
दाना बिखेरेगा——
तो कोई, मछलियों को,
आटे की लोई खिलायेगा।।
कोई गाय को गौ- माता कहेगा,
कोई गजराज की पूजा करेगा।
कहीं सेमिनार तो,
कहीं भाषण होगा ।
पर्यावरण के लिए ,
शख्त प्रशासन होगा।।
क्योंकि आज,
पर्यावरण दिवस जो है।
हाँ पर्यावरण दिवस,,, किन्तु,
यह बहुत बड़ी बात है कि,
आज भी कुछ लोंगो को,
इन सब की चिंता है।
जैसे भी हो कम से कम,
साल में एक दिन इसके लिए,
बनावटी सही , जीता तो है।
कल इनके साथ क्या हो,
यह देखने की किसे फुर्सत?
हमने पेड़ लगाया था,
कोई उखाड़ ले गया,
तो हम क्या करें?
आलीशान बंगलों में,
गौरैया के घोसले,
अब शोभा नहीं देती।
यहां खुद को खाने को,
लाले पड़ रहे हैं,,,,,,,,
फिर मछली या चिड़ियों को,
दाना आखिर कौन चुगायें ?
महलों की रखवाली के लिए,
कुत्ता है न,,,,,,कुत्ता—
गाय पालने की जोखिम,
अब भला कौन उठाये?
हाथी तो जंगली जानवर है,
उनसे मानवता कौन दिखाये?
आज इस दोयम चरित्र के साथ,
हम सब जी रहे है।
मन में स्वार्थलोलुपता का जहर,
अंदर ही अंदर पी रहे हैं।
ऐसे लोगों के बल पर पर्यावरण,
न सुधरा है, न सुधरेगा।।
जब तक जुमलेबाजी से भरी,
नेताओं की भाषण होगी।
जब तक अपने कर्तव्यों से,
हिलहवाला करते प्रशासन होगी।
और जब तक दोगलेपन की,
हद पार करते आम लोगों की,
दोहरेपन को उजागर करती,
चाल और चरित्र होगी,
तब तक पर्यावरण संरक्षण पर,
बात करना बड़ी विचित्र होगी।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)