लेखक की कलम से

दुपट्टा …

 

मैं मुश्किल से सम्भालती हूँ ये दुपट्टा

तेज हवाओं में बमुश्किल से दुपट्टा

तुम यादों को मेरी सम्भालों दुपट्टे सा

यादों में हर मुमकिन मेरा दुपट्टा सा।

 

तेरे नाम के लिए ही पहना ये दुपट्टा

तेरे लिए ही हैं लगाया आज ये दुपट्टा

तुमने ही कहा था किसी रोज मुझसे

कि लाल रंग का भाता हैं तुम्हें दुपट्टा।

 

आज देखो हवा में लहराया मेरा दुपट्टा

बारिशों में भी भिगोया मेने ये दुपट्टा

एक बार आज आकर तो देख दुपट्टा

तेरे लिए ही पहना है देख आज दुपट्टा।

 

जब भी हवा चलती तो उड़ता हैं दुपट्टा

मुश्किल से सम्भाल पायी हूँ आज दुपट्टा

आ जाओ इस बार पकड़ो ये दुपट्टा

आज नहीं संभालता तेज हवा में दुपट्टा।

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                             

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