लेखक की कलम से
समा …
समा है खिला खिला
दिल से है गिला गिला
भूलकर सारे गम
दिल से दिल अब मिला।
अब आजाओ सजन
होती है अब जलन
ले परवाना दिल से
और कर मुझसे मिलन।
कैसे कहू मन की बात
कैसे कटे ये दिन रात
जग से सारे रिश्ते तोड़
मिलाई तुमसे हाथ।
तुम्हारीं सांसो कि खुसबू से
महक जाती हूँ मन से
गिला शिकवा भूलकर
मान ली तुम्हें दिल से।।
©अर्पणा दुबे, अनूपपुर