लेखक की कलम से

रिश्ते …

तुम्हारा ये अंदाज,

तुम्हें बनाता

अनोखा!

ये जिन रिश्तो की बातें,

तुम जो करते हो न,

वे सब बेमाइने हैं

मेरे भाव जगत में….

 

ये ऐसे बदलते हैं

जैसे अग्नि की लपटें

पलट जाती पवन वेगों के संग

दिशाओं में…

झुक जाता समग्र व्यक्तित्व

!

ये रिश्ते

क्षणिक और क्षणभंगुर

जीवन का एहसास दिलाते,

बता देती कुछ भी चिरस्थाई नहीं

भाव जगत में…

 

नश्वर जगत में,

तुम्हारा होना

जैसी पत्थर की लकीर की तरह

जो सदियों व्यतीत होने पर भी अमिट

रहता है….

 

इनकी अहमियत

मेरे मनःजगत में सर्वोत्तम,उत्कृष्ट है

मैं यूं कह सकती हूँ

मेरा जीवन इन पत्थर के ऊपर चिन्हित निशानों वाले रिश्तों पर ही पूर्णरूपेण अबलंबित…

 

ये हैं प्राणआधार

मेरे….

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                           

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