लेखक की कलम से

धरा की अनंत पीड़ा …

विश्व धरा दिवस पर विशेष

 

 

 

विश्व धरा ने युगों-युगों से ,

अनंत पीड़ा सही।

जीवन दिया ,

पोषण किया।

पालक होकर भी,

पतित रही।

 

अपनी ही संतानों का,

संताप हर ,

अनंत संताप सहती रही।

 

विश्व धरा ने युगों-युगों से,

अनंत पीड़ा सही।

 

स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर भूख मिटाई दुनिया की ,

पर अपने संतानों की लालसा से ,

उनके लालच से बच ना सकी।

 

 

विश्व धरा ने युगों-युगों से ,

अनंत पीड़ा सही।

 

अपनी सारी सुंदरता देती रही।

और अपनी ही संतानों से ,

करूपित होती रही।

 

गंदगी के ढेरों को सहती रही।

अमूल्य धरोहरों को देकर ,

प्रदूषण से सांसे घुटवाती रही।

विश्व धरा ने युगों-युगों से ,

अनंत पीड़ा सही।

 

इंसानों की गलतियों से ,

जब रुौद्र रूप लेती।

सबकी गलतियों की सजा ,

खुद ही सह लेती।

 

आज विश्व धरा दिवस पर ,

संकल्प लें……

कोरोना की आपदा

जो कुछ

लालची इंसानों ने बनाई।

 

किस तरह विरान कर दी धरा।

मौत से कैसे धरा आज कंप कंपाई।

©प्रीति शर्मा, सोलन हिमाचल प्रदेश

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