लेखक की कलम से

सजना के संग खेलूँ होली …

 

देखो फागुन आया, मन भावन आया।

खुशियों की बहार है, मस्ती बेशुमार है।

 

धानी चुनरिया ओड के मैं प्रीत के रंग रँगाऊ,

सजना के संग खेलूँ होली मन ही मन इतराऊ।

चूनर उड़ती चले,

पूर्वा बहती चले।

 

 

हाथ में चूड़ी पहन के मैं कंगना से टकराऊ,

खन- खन करती चूडियों से साजन को बुलाऊ,

मन में उमंग पले,

दिल खीचा चले,

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड           

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