लेखक की कलम से

पिया मिलन ….

जीवन की अनुपम बगिया के,
हम तुम भंवरे प्यारे थे,

नदिया की अविरल धारा के,
आतुर सुखद किनारे थे,

प्रियतम मेरी माला के माणिक बनकर तुम आये हो
मेरे हृदय पटल पर अपना तुम अधिकार जमाये हो

पिया मिलन की इस चाहत को,
हम तुम दे पाएं अंजाम!
प्रेम जगत मेंअन्तर्मन ये तब कर पायेगा विश्राम।

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज                

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