लेखक की कलम से

सिर्फ तू…

 

तू अक्स है, मेरी जिंदगी का,

गर तू नहीं, तो मैं नहीं।

मेरा वजूद है तेरी पनाहों में,

तेरी पनाह नहीं, तो मेरा जहां नहीं।

है ऐसी कोई, मेरी रात नहीं,

जब तू मेरे, ख्वाबों में नहीं।

है ऐसा कोई, मेरा दिन नहीं,

जब तू मेरे, ख्यालों में नहीं।

तेरे सदके जाऊं मैं जहां रहूं,

तेरा साथ ऐसा मिला मुझे,

कि मैं क्या कहूं, कि मैं क्या कहूं…

तेरी बाहें हैं, मेरी रहगुज़र,

अगर साथ है, तू हमसफर,

तो कट भी जाएगी यह कठिन डगर।

मैं जानती हूं, मेरा रहनुमा है तू,

तो फिर कर ना देना, मेरी रुसवाई भी तू।

मेरी सुबह भी जागती, तुझी से है,

मेरी रात भी सोती, तुझी से हैं।

मेरी जिंदगी के सफर में,

है ऐसी कोई राह नहीं,

जहां तू नहीं, जहां तू नहीं…

 

©अनुराधा, नई दिल्ली                   

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