लेखक की कलम से

काश! लौट आता बचपन …

बचपन अक्सर याद आता है।

बचपन में लौट जाने को जी चाहता है।

 

दोस्तों के साथ हंसना खेलना।

रेत के घर बनाना।

ना जाने क्या क्या सपने संजोना।

माता-पिता का उस घर में

अच्छा सा ठिकाना बनाना।

बहन अच्छी है तो उसे

घर में जगह देना।

भाई से झगड़ा हुआ है

तो उसे घर में न आने देना।

सुलह हो गई तो

अपने घर को भाई का घर बताना।

वो रेत का घर याद आता है।

बचपन में लौट जाने को जी चाहता है।

 

जरा सी चोट लगने पर आंसू बहाना।

दौड़ कर मां के गले लग जाना।

मां का फूंक मार कर

जरा सी उस खरोंच को सहलाना।

चींटी मर गई ये कह कर फुसलाना।

अपने पल्लू से आंसू पोंछना।

मेरी पसंद का खाना बनाना।

मेरी जरा सी मुस्कुराहट पर

उसका मुस्कुरा देना।

मां का लाड दुलार याद आता है।

बचपन में लौट जाने को जी चाहता है।

 

गांव के छोटे से स्कूल में पढ़ने जाना।

टाट बिछाकर शान से बैठना।

लकड़ी की तख्ती पर

कलम और स्याही से लिखना।

मुल्तानी मिट्टी से तख्ती को पोतना।

ग़लतियों पर शिक्षक की डांट खाना।

क्लास के बाहर खड़े रहना।

सही से पाठ सुनाने पर

शाबाशी मिलना।

अच्छा रिपोर्ट कार्ड मिलने पर

पापा को बताने का अवसर ढूंढना।

उनसे सौगात की फरमाइशें करना।

स्कूल का वो जमाना याद आता है।

बचपन में लौट जाने को जी चाहता है।

 

बैलों के गले में घन्टियों का बजना।

पक्षियों का चहचहाना।

सरसों के फूलों का

खेतों में चादर सा बिछ जाना।

रात में छत पर भाई बहनों संग

तारों की छाया में सोना।

दादी से परियों की कहानी सुनना।

बारिश आने पर बिस्तर समेट

अधखुली आंखों से सीढियां उतरना।

अरे सम्भल कर, गिर जाओगे

दीदी की हिदायतें सुनना।

बारिश में भीगी मिट्टी से

सोंधी सोंधी खुशबू का आना।

दोस्तों के साथ लड़ना झगड़ना, रूठना, मनना, मनाना याद आता है।

बचपन में लौट जाने को जी चाहता है।

 

 

©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात          

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