लेखक की कलम से

नव सृजन ….

 

भयभीत हूँ
संशय में हूँ
कहीं लौट तो नहीं आए
जनरल डायर तुम ?
नहीं था
हमारी संस्कृति में
पीठ पीछे वार
तुम्हारी संतान तो नहीं
कहीं ये सब ?
बेगुनाह पर अत्याचार
तुम्हारा इतिहास रहा
कहीं जलियांवाला तो नहीं
दोहरा रहे तुम ?
भूल रहे हो तुम
वहीं से लाया था
खून सनी मिट्टी
आज़ादी का बीज बोने को
और टूटा था तुम पर
क़हर बन कर
क्या फिर से
किसी युद्ध की
पृष्ठभूमि है यह ?
टूटना विडंबनाओं का
टूटना विसंगतियों का
टूटना अभिमान का
अभी है बाक़ी
शायद नव सृजन
अब है ज़रूरी
बहुत ज़रूरी

 

@डॉ० दलजीत कौर, चंडीगढ़

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