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मेरे जन्मदाता ….
अच्छा है
तुम चले गए
मुझे छोड़ अकेला,
तुम्हीं तो थे
केवल एकमात्र
बस तुम
जो समझते थे
हर परिस्थिति,
पढ़ लेते थे
मेरे मन का विज्ञान
और रख देते थे
अपना हाथ
चुपके से
मेरे सिर पर।
लिखा रहता था
वो सब
तुम्हारी आँखों में
जो कहना चाहते
थे तुम, और सुनना
चाहती थी मैं।
मेरी हर आस,
मेरा विश्वास,
अनंत आकाश थे तुम,
मेरी उम्मीदों का
दृढ़ अहसास हो
आज भी तुम।
अच्छा है तुम
चले गए
मुझे छोड़ अकेला,
आज होते तो
होते दुखी
मुझे देख लाचार
असहाय
सब खोकर,
विक्षिप्त सा।
ढूंढ रही हूँ तुम्हें,
कहाँ हो,
मुझे बुलाओ
या आओ, तुम
अपना हाथ फिर से
मेरे सिर पर रखने।
©डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़