माँ-2 …
क्या कहूँ मैं माँ बिन तेरे
अब भी हालत क्या है मेरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा
रिश्तों में बढ़ गई है दूरी
क्या कहूँ मैं माँ बिन तेरे_ _ _
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- जो थे लाड लडाए तुमने
मैं वो लाड लडाता हूँ अब
सोचूं जब तेरे प्रेम की सीमा
थाह नहीं कोई पाता हूँ तब
खुद से होने लगा अजनबी
ऐसी बन गई है मजबूरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा _ _ _
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- रणनीति कोई बना न पाया
इसीलिए पछताता हूँ मैं
चक्रव्यूह न तोड़ना जानूं
फिर भी अंदर जाता हूँ मैं
अभिमन्यु की तरह आ फँसा
तड़प-तड़प मरना भी जरूरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा _ _ _
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- अपने-आप-से करूँ शिकायत
सुख भी तुमको न दे पाया
आँसू पश्चाताप के बहते
जीवन में इक बाढ़ है आया
संस्कार तेरे नहीं भूला
वे भी तो हैं बहुत जरूरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा _ _ _
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- रातों में अब भी हूँ जगता
तेरी राह निहारूँ प्रतिपल
जीवन भी अब लगे अटपटा
समय की धारा बहती कल-कल
कर्मों का सब लगे खेल यह
किए जो मैंने बिना सबूरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा _ _ _
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- पिता से कहना अथाह है श्रद्धा
कितनी? नहीं दिखला पाऊँगा
तुम ही दोनों मेरे भगवत
अगले जन्म में फिर आऊँगा
रिश्ते क्या हैं तुमसे सीखा
जीवन इनसे,ये नहीं मजबूरी
अकेलापन पहले से भी ज्यादा _ _ _
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- एक बात कबसे है मन में
जो न कभी बतला पाया हूँ
मित्र कहें स्वभाव है तुम-सा
क्योंकि मैं तो तेरा साया हूँ
सबसे उच्च स्थान पर तुम-पितु
आशीर्वाद रखना भूरि-भूरि
अकेलापन पहले से भी ज्यादा*
रिश्तों में बढ़ गई है दूरी
क्या कहूँ मैं माँ बिन तेरे_ _ _
©डॉ. दीपक, हिंदी विभागाध्यक्ष, एस.जी.जी.एस. कॉलेज, पंजाब