दुनिया

दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक हो रहे मराठा

मराठा प्राईड फिर से आएगी

मुंबई {संदीप सोनवलकर} । महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक के पीछे की एक बड़ी वजह राज्य में हो रहा मराठा एकीकरण है। बीते पांच साल से हाशिये पर चल रहे मराठा नेता चाहे वो किसी पार्टी के हो फिर से मराठा मुख्यमंत्री बनाने की जुगत में लगे हैं। मराठा नेताओं को लगता है कि सत्ता चाहे किसी दल का हो मराठा ही मुख्यमंत्री बने। मराठा प्राईड फिर से आ जाएगी।  

राज्य में बीते पांच साल से देवेन्द्र फणनवीस सरकार के कारण मराठा हाशिये पर हैं। केवल मंत्रिमंडल ही नहीं बल्कि सत्ता चलाने वाले ब्यूरोक्रेसी में भी ब्राह्मण अफसरों की ही चल रही है। इसलिए चुनाव में ओबीसी और मराठा दोनों वोट बैंक ने बीजेपी का साथ छोड़ा और अपने अपने जातिगत अभिमान के लिए वोट किया। ये बात मुंबई और दिल्ली के राजनीतिक रणनीतिकारों को भी समझा दी गई।

कांग्रेस के दिल्ली के नेता भले ही कुछ भी समझे लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण जैसे दिगगज तक किसी हाल में मराठा सीएम बनाने की तैयारी में लगे है। यही बात वो कांग्रेस आलाकमान को नए तरीके से समझा रहे हैं कि बीजेपी को दूर करने के लिए एनसीपी शिवसेना को समर्थन दे दिया जाए। शिवसेना की तरफ से भी मराठा नेता एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है ताकि मौका लगे तो मराठा एकजुटता के लिए काम आए। शिवसेना प्रमुख उद्धव और उनके बेटे आदित्य सीएम नहीं बनेगे तो शिंदे को आगे किया जाएगा।  

एनसीपी छत्रप शरद पवार लंबे समय बाद महाराष्ट्र में मराठा कार्ड खेल रहे हैं। एनसीपी में 56 में से 24 विधायक मराठा है जबकि कांग्रेस में 17 विधायक मराठा चुनकर आए हैं। शिवसेना में भी 19 विधायक मराठा चुनकर आए हैं। जाहिर है सब किसी भी मराठा के नाम पर एकजुट हो सकते हैं।  

महाराष्ट्र में मराठों की संख्या करीब 26 फीसदी मानी जाती है और राज्य बनने के बाद से कुछ मौके छोड़कर हर बार मराठा ही मुख्यमंत्री रहा है लेकिन देवेन्द्र फणनवीस ने सरकार बनाने के बाद चुन-चुनकर अपने और दूसरे दलों के मराठों को दरकिनार किया। ये बात बीजेपी में भी महसूस की जा रही है। बीजेपी में भी मराठा नेता चंद्रकांत पाटिल के पीछे पार्टी के मराठा नेता एकजुट हो रहे हैं। पाटिल चुप हैं और नाम अभी देवेन्द्र फणनवीस का ले रहे हैं।  

राज्य में भले ही ना दिखती हो लेकिन अंदरखाने नौकरशाही में और राज्यसत्ता में जातिगत समीकरण खूब चलता है। फणनवीस के सीएम बनने के बाद मराठा और ओबीसी दोनों नाराज हैं। यही वजह है कि राज्य में वोटिंग के दौरान मराठों ने एनसीपी और कांग्रेस को तो ओबीसी ने शिवसेना और प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी को जमकर वोट दिया।  

बीजेपी के वार रुम में बूथ वाइस वोटिंग का पूरा आंकलन लगातार जारी है। जिसमें खुलकर सामने आया है कि मराठा वोट बैंक ने रणनीतिक तौर पर वोटिंग की। यहां तक कि मराठा वोट बैंक ने सातारा में उदयन राजे को हराकर मराठा श्रीनिवास पाटिल को लाकर मैसेज दिया कि मराठा बीजेपी से नाराज हैं। यही संदेश ओबीसी ने पंकजा मुंडे को बीड में हराकर दिया। राज्य में देवेन्द्र फणनवीस ने मराठा आरक्षण भी दिया लेकिन फिर भी नहीं माने।  

अब भाजपा को ये बातें समझ आ गई है। हरियाणा में भी जाट वोट बैंक ने चौटाला और हुड्डा को जिताकर संदेश साफ दिया है। इसलिए बीजेपी में भी मराठा सीएम बनाने की बात भी होने लगी है। बीजेपी को लगता है कि अगर मराठा सीएम बनाया तो पवार भी विरोध नहीं करेंगे।

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