लेखक की कलम से
पुरुष बनाम स्त्री …
महिला दिवस विशेष
अपना मेल नहीं हो सकता
मैं साइकिल तू बाइक है
मैं बिन देखी हूँ पोस्ट प्रिय
तुझको मिलते सौ लाइक हैं
तू फर्श चमकती टाइलो का
मैं कचरा गली के ढेर का
तू वैलेइन्टाइन गुलदस्ता
मैं हूँ इक फूल कनेर का
तू एरोप्लेन की सर्विस है
मैं रेल की मारा मारी हूँ
तू इंग्लिश मीडियम का कल्चर
मैं एक विभाग सरकारी हूँ
मैं बन्द गली की लाइट हूँ
जो जले कभी और बुझ जाये
तू बाजारों की जगमग है
जो कभी नहीं ढलने पाये
तू ऊँची बिल्डिंग शहर की है
मैं गन्दी बस्ती गांव की
तू आईसीयू का आपरेशन
मैं चीर फाड़ एक घाव की
तू पुलिस की गाड़ी का सिग्नल
मैं एम्बुलेंस का सायरन हूँ
तू सुर्ख लहू वाला मानस
मैं कम गरीब में, आयरन हूँ
©शालिनी शर्मा, गाजियाबाद, उप्र