लेखक की कलम से

प्रेम ….

बस प्रेम ही तो जीना था,

प्रेम ही तो पाना था,

प्रेम में ही खो जाना था,

बस प्रेम ही हो जाना था,

पर,

भूल गए इस अनंत प्रेम को,

देह लिप्सा में लिप्त हुए,

भूल गए प्रेम की अनंता,

रूह से रूह के स्पर्श को,

बस

बना दिया प्रेम का निकृष्ट रूप,

बस देह ही पाने को,

आज किसी और से प्रेम,

कल किसी दूजे को पाने को,

क्या,

यही था प्रेम,यही अनंतता,

भूल गए हम सब,

लिप्त हुए स्वार्थ पाने को,

बस वासना बुझाने को,

क्यो,

जगा नही सकते,

प्रेम की वो विराटता,

जन्म जन्मांतर के प्रेम संबंध,

बस प्रेम में जी जाने को।।

 

 

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