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कन्या की खोज …
आज देखा मैंने
हैरत आँखों से
चरण पखारते
उन कन्याओँ के चरणों को
जिनको
मार दिया जाता है आज भी
औरत की कोख में ही
और
दुत्कारते हो लाल बत्ती पर
भीख माँगती इन्हीं कन्याओं
को
दिखाते हुए अपने
रंग लाल-पीले
पर आज कुछ ख़ास है
अष्टमी के पावन दिवस पर
हाथ जोड़कर
हक़ से
विनती कर
न्योता दे कर
इन्हें हो पूजते
क्या सचमुच में
?
प्रश्न है मन में मेरे
कभी भ्रूण में
कभी चीर हरण कर
कभी आत्म सम्मान को
ठेस पहुँचा कर
तुम नहीं घबराते
ना हाथ कभी थर्राये
पर चतुर हो तुम
शायद इसी दिन के लिए
तुम इन्हें हो बचाते
कभी कभी इन्हीं का
उद्गार हो करते
क्योंकि
सरल ह्रदय है नारी ,
तुम हो जानते
हर वर्ष क्षमादान देतीं तुमको
आतीं है मॉ आशीष देने
हलवा पूरी चना स्वीकार कर
सहस्रों दुआएँ देतीं
मुस्कान बिखेरी
अगले वर्ष आने को….
पाप तुम्हारे धोने को…..
©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश