लेखक की कलम से
महुआ की तरह टपक रही जिंदगी …
कठिन दौर है
सम्भल कर रहिए
दूरियां सम्हाल कर
दिलों में रहिए
अपनापन जिंदा रहे
सबके बने रहिए
किसी के ग़म ही नहीं
मुस्कुराहटों में रहिए
हाथ बढ़ाना है हौसलों का
मुस्किलों में साथ रहिए!
©लता प्रासर, पटना, बिहार