लेखक की कलम से
मुक्तक …
मुझे जन्नत लगी दुनिया,
झलक तेरी जो मिल जाये ।
मयूरी मन मगन होकर,
बिना जलधर मचल जाये ।
सुनाता गीत झींगुर भी,
गगन छूने चली चींटी,
मेरी पर्वत रुपी बाधा,
सहजता से ही टल जाये ।।
कृपा तेरी जो मिल जाये,
कली सोई भी जगती है।
लुभाते चाँद तारें है,
दुपहरी साँझ लगती है।
रुठे जो आप हो मुझसे,
तो कोयल कूक ना भाये,
उफानें मारती नदियाँ,
ज्यों झष जल को तरसती है ।।
©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)