लेखक की कलम से

लक्ष्मी आगमन ….

(मां लक्ष्मी के कदम)

 

 

दीपावली की खुशनुमा दोपहर पूरा परिवार सुबह की पूजा व खाना प्रसाद के बाद शाम को होने वाली पूजा की तैयारी में लगा था। निर्मला देवी बैठी बैठी अपनी बहु वृन्दा को रंगोली बनाना समझा रही थी इतने में छोटा सा प्यारा सा बिट्टू दौड़ता हुआ आता है और दादी से अपनी तोतली आवाज में पूछता है दादी दादी यह मां किसके पैर बना रही है?…

 

 

 

दादी उसे प्यार से गोदी में बैठा ते हुए कहती है ,अरे प्यारे बिटवा तेरी मां साक्षात लक्ष्मी है और मां लक्ष्मी के कदम बना रही है रात को मां लक्ष्मी जब हम पूजा करेंगे तो इन्हीं कदमों पर अपने पैर रखते हुए मां अंदर आएंगी और हमारे घर को खुशियों से भर देंगी। पास ही बिट्टू के पापा किशनचंद बैठे थे और इस वार्तालाप को बड़े ध्यान से सुन रहे थे।…

 

 

 

पर दादी कैसे पता चलेगा की लक्ष्मी माता आई है कि नहीं बताओ ना दादी ।निर्मला जी ने यूं ही बच्चे का मन रखते हुए कहा अरे बिटवा मां के पैर लाल ही रहे तो समझना लक्ष्मी मां अंदर आ गई और यदि मां के पैर काले हो जाएं तो समझना मां नहीं आई और वो नाराज़ हैं….

 

 

 

रात की पूजा के बाद किशनचंद ने वृंदा से अपने कुर्ते पजामे व दुकान की गल्ले के सारे रुपए लाने को कहा वृंदा ने पूछा इतनी रात आप कहां जा रहे हो जी और यह रुपए किसलिए ।किशन चंद ने कहा दोस्तों ने जुए के शगुन के लिए बुलाया है उसी के लिए जा रहा हूं वृंदा ने कहा यह कहां तक सही है कि इतनी मेहनत से कमाया हुआ धन अंधविश्वास के कारण जुए में लगा दिया जाए।

 

 

किशन चंद ने कहा ये शगुन है ,हाई सोसाइटी में इसी तरह दीपावली का त्यौहार पूरा माना जाता है ।ऐसा कह कर किशन चंद वृंदा को लगभग धक्का देते हुए मुनीम के साथ पैसे का थैला लेकर निकल गए वृंदा का सर दीवार से लगा और वह अचेत होकर गिर गई ….

 

 

 

यह वही पल था जब मां लक्ष्मी अपने कदम घर में रख रही थी और वृंदा के अपमान के साथ ही उल्टे पांव वापस लौट गई।

 

 

उधर किशन चंद क्लेश में घर से निकला था ,वह रकम पर रकम हारने लगा और धीरे-धीरे अपनी सारी मेहनत की कमाई हार बैठा और जब देर रात उसका मुनीम उसे घर छोड़ने आया तो किशनचंद को अचानक रंगोली में बने मां लक्ष्मी के पैर काले नजर आने लगे…..

 

 

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