लेखक की कलम से
कान्हा …
कान्हा के प्रीत में भूल गयी सब लाज
साँवरी छवि बनी मीरा की साज
भूले से जो भूल हो भूल जाना तुम
दुनियां की भीड़ में हो न जाना गुम
रोकर तेरी याद में अश्क बहाये है
सलोना मुखड़ा दिल में सजाए है
तेरे दरस की आस कब से लगी है
नैन तके राह को प्यास सी जगी है।।।
©अर्पणा दुबे, अनूपपुर