नई दिल्ली

28 सितंबर को कांग्रेस का हाथ थामेंगे कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी को भी दिलाई जाएगी सदस्यता, भाजपा होगी कमजोर …

नई दिल्ली। तात्कालीन केंद्रीय शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी के कार्यकाल में जेएनयू का मुद्दा काफी गरमाया था। उन्हीं के कार्यकाल के बीच एक छात्र देश ही नहीं बल्कि दुनिया के पटल पर छा गया था और भारत की छवि को लेकर दुनिया भर में बड़ा संदेश गया था। इस आंदोलन के दौरान एक छात्र का नाम सुर्खियों पर था, वह है कन्हैया कुमार। कन्हैया कुमार व जिग्नेश मेवानी जल्द ही कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करेंगे। जिग्नेश मेवानी गुजरात से हैं और ये राष्ट्रीय दलित जननेता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं।

जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) 28 सितंबर को कांग्रेस पार्टी का दामन थामने जा रहे हैं। कांग्रेस मुख्यालय में उनके और गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी को पार्टी की सदस्यता दिलाई जाएगी। न्यूज एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है।

एक के बाद एक चुनाव हार चुकी कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव पर है। चुनाव में जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए पार्टी जातीय समीकरणों के साथ युवाओं पर दांव लगाने जा रही। ताकि, 2024 के चुनाव में जीत हासिल की जा सके। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल कराना उसी का हिस्सा है।

कन्हैया कुमार: कन्हैया कुमार का ताल्लुक बिहार के बेगुसराय है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने किस्मत भी आजमाई थी, पर वह भाजपा के गिरिराज सिंह से हार गए। बेगुसराय में भूमिहार मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार है। ऐसे में वह खुद को साबित करने में विफल रहे।इसके बावजूद पार्टी मानती है कि बिहार में नए चेहरे की जरुरत है। छात्र नेता के तौर पर उन्हें संगठन बनाने का अनुभव है। बिहार कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह कहते हैं कि कन्हैया के आने से पार्टी को फायदा होगा। क्योंकि, कन्हैया वही मुद्दे और लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्हें कांग्रेस उठाती रही है।

जिग्नेश मेवाणी: वर्ष 2017 के चुनाव में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिगड़ी ने अहम भूमिका निभाई थी। हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वहीं, अल्पेश ठाकोर भाजपा में चले गए। पर जिग्नेश मेवाणी ने कभी कोई समझौता नहीं किया और वह लगातार भाजपा से लड़ते रहे हैं। गुजरात में सात फीसदी दलित हैं और उनके लिए 13 सीट आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में अधिकतर आरक्षित सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। उस वक्त जिग्नेश मेवाणी अपनी सीट तक सीमित रहे थे और कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था। पर मेवाणी के कांग्रेस में आने से तस्वीर बदल सकती है।

Back to top button