लेखक की कलम से

कलयुगी दोहे…!!

१)ऐसी बानी बोलिए
अपना आपा खोय ।
सुनने वाला कई दिनों,
फूट फूट कर रोय ।।

२)प्रशंसक बन रह जाइए,
आँगन कुटी छवाय ।
मतलब अपना साधलो ,
सिर पर रखो बिठाय।।

३)झूठ बराबर तप नहीं ,
साँच बराबर पाप।
जाके हृदय साँच है ,
बेटा सुखी न बाप ।।

४)साईं इतना दीजिए ,
जो ,घर में नाहिं समाय ।
पड़ोसी सारे जल मरें ,
खाता विदेश बन जाय ।।

५)कह सुगन्ध अब तो निभे,
बेर केर को संग ।
फायदा है तो साथ रहें,
कट जाहे चाहे अंग ।।

६)पानी खूब बहाइये
बिन पानी सब सून ।
औरों को चाहे न मिले
हमरे मनमा सुकून ।।

७)भला जो देखन में चला ,
भला ना मिलया कोय ।
जो दिल खोजा आपना ,
मुझसे भला न कोय ।।

८)बड़ा हुआ तो ऐसा हुआ ,
जैसे पेड़ खजूर ।
हम तक कोई पहुँचे नहीं,
रहे सब हमसे दूर ।।

९)आज करे सो काल्ह कर ,
काल्ह करे सो परसों ।
पल में प्रलय नाय होएगी,
अभी पड़ी है बरसों ।।

१०)सुगन्ध धागा प्रेम का ,
यूँ तोड़ो चटकाय ।
जोड़न की जरुरत नहीं,
दूसरा रोय मरजाए।।

©पूजा शर्मा “सुगन्ध” गाजियाबाद उ०प्र०

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