लेखक की कलम से

मोहब्बत से परहेज़ था मुझे ….

ख्वाब नए आंखों को दिखा गया कोई
हसरतें दिल में फिर जगा गया कोई

इश्क़ , मोहब्बत से परहेज़ था मुझे
पर चाहत की आग जला गया कोई

खोए खोए से बहुत रहने लगे थे हम
हमको ही हमसे यार मिला गया कोई

दीवानगी दीवानों की तब समझ आई
जब हमको ही दीवाना बना गया कोई

खुमार ऐसा चढ़ा उतरता ही नहीं है
जब से हमको गले से लगा गया कोई

हर घड़ी हर पल ‘ओजस’ उसे ही सोचे
जन्नत की सैर मुझे करबा गया कोई

©राजेश राजावत

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