लेखक की कलम से
याद है मुझे …
याद है मुझे अब भी जीवन के
वे दुर्लभ दिन
झंझावातों से रहित
निश्चिंतता से सिक्त
चपलताओं से युक्त
छलताओं से रिक्त
याद है मुझे अब जीवन के
वे अनमोल दिन …..
कपोलो सी आतुरता
नवकली सी आकुलता
रश्मियों सी तत्परता
उर्जित सी चंचलता
याद है मुझे अब भी जीवन के
वे अद्भुत पल…
वो ओस की बूंदों का गुम होना
वो घिरते बादलों का फुर्र होना
वो संध्या का स्वर्णिम पल होना
वो अर्द्धरात्रि में तारकों संग होना
याद है मुझे अब भी जीवन के
वे अनुपम पल…
जहाँ जाकर विश्राम करूँ मैं
स्मृतियों के घर-बार देखूँ मैं
विविध रंगों के चटकार चखूँ मैं
यादों के भाव-विचार निरखूँ मैं
सुख को ही अंगीकार करूँ मैं
याद है मुझे अब भी जीवन के
वे दुर्लभ दिन ….
@अल्पना सिंह, शिक्षिका,कवयित्री